उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘प्राईम मिनिस्टर लियाकत अली की हत्या के विषय में मैंने एक पृथक् अध्याय लिखा है।’’
‘‘खालिक-उज-जमान ब्रिटिश ऐजेण्ट था। हिन्दुस्तान के अंग्रेज अधिकारियों ने उसे कांग्रेज में भेज कांग्रेस को मुस्लिम लीग के अनुकूल बनाने का यत्न किया था। वह बड़ी सीमा तक सफल भी हुआ और जवाहरलाल नेहरू इत्यादि को देश-विभाजन के लिए तैयार कर सका था। देश-विभाजन के पश्चात् वह भारत में रहा और यहां के मुसलमानों को, पाकिस्तानी आक्रमण के समय, भारत के खिलाफ पाकिस्तान की सहायता करने के लिए संगठित कर रहा था। यह रहस्य सरदार पटेल को पता चला। वह उसे देशद्रोह में पकड़ना चाहते थे परन्तु वह पाकिस्तान को भाग गया और वहां पाकिस्तान की सरकार में भारत के मुसलमान रिफ्यूजियों के पुनर्वास का काम करने लगा। साथ ही यह मुस्लिम लींग का प्रधान बना दिया गया। वहां वह जिन्ना के साथ ब्रिटेन के गुट के लिए काम करता था।’’
‘‘जिन्ना साहब की मृत्यु के उपरान्त और लियाकत अली के अमेरिका गुट में चले जाने पर इसका सितारा मद्धम पड़ने लगा और अगस्त सन् १९५० में इसे मुस्लिम लीग के प्रधान पद से त्याद-पत्र देना पड़ा।’’
‘‘मेरा विश्वास है कि अंग्रेज़ी टोडी दल के नेताओं का लियाकत अली की हत्या में हाथ था। इसके बहुत प्रमाण मिलते हैं। इस विषय में मेरी जांच का परिणाम इस प्रकार है–
‘‘पन्द्रह अक्टूबर सन् १९५१ को ‘ग्राण्ड मुस्लिम होटल’ रावल-पिण्डी के एक कमरे में सईद अकबर नाम का एक व्यक्ति ठहरा हुआ था। उसके साथ एक युवक सोलह-सत्रह वर्ष की आयु का भी था। लड़के का नाम दिलावर खां था। ये बाप-बेटा दोनों अपने गांव ऐबटाबाद से वहा आये थे और तीन दिन से ठहरे हुए थे। पन्द्रह अक्टूबर की रात को बाप-बेटे में बातचीत हो रही थी जो होटल के एक बेयरा ने छुप कर सुनी और हत्याकाण्ड की जांच करनेवाली कमेटी के सामने बयान में कही थी।
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