उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘लड़के ने बाप से पूछा था, ‘मैं इस होटल के बन्द कमरे में सोता-सोता ऊब गया हूं। हमें यहां कब तक रहना होगा?’’
‘‘बाप का उत्तर था, ‘बेटा! हम सरकारी पैंशन याफ्ता हैं और सरकार के हुक्म से यहां आये हुए हैं। पैंशन देने वाले हमारे कमिश्नर के अफसर ने मुझे बुलाया है, मगर मुल्क के प्राईम मिनिस्टर के यहां आने की तैयारी में वह मुझसे मिल नहीं सका। दो-तीन दिन और लगेंगे।’’
‘हमें सरकार पैंशन क्यों देती है?’ दिलावर खां का प्रश्न था।
‘‘इस पर सईद अकबर हंस पड़ा। हंसते हुए, बोला, ‘मैं काबुल के अमीर को मार डालने का इरादा रखता था।’’
‘क्यों?’
‘अमीर रूस की सहायता से हिन्दुस्तान में अंग्रेज का विरोध करता था। वह भारत के विद्रोहियों से पत्र-व्यवहार कर रहा था। इस कारण मुझे क्रोध चढ़ आया और मैं उसकी हत्या के लिए बढ़िया बन्दूक की खोज करने लगा। मुझे एक अंग्रेज अफसर ने एक ऑटोमैटिक बन्दूक दी थी और मैं एक दिन अमीर पर गोली चला बैठा। अमीर तो बच गया। यहां मेरे कारनामे पर अंग्रेज़ी सरकार ने मेरी पैंशन लगा दी और मैं कोहाट में रहने लगा।
‘आज़ादी मिलने पर अब पाकिस्तान सरकार मुझे पैंशन देती है। इसी नाते मुझे बुलाया गया है और मैं यहां आया हूं।’
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