उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘जी! मगर एक बात समझ लेनी चाहिए कि भूमण्डल की सब कौमों से अधिक गधापन अमरीकनों में है। ये सदा अपने शत्रु का पक्ष लेते हैं और अपने मित्र का गला काटने का यत्न करते हैं।
‘‘अमरीकी यह जान बूझ कर नहीं करते। वे अपनी बुद्घि के विकार से काले को सफेद और तानाशाही को प्रजातन्त्र मानने लग जाते हैं। हृदय से सरल, बुद्धि से मोटे, शराब में धुत् अमरीकन कूटनीतिज्ञ पश्चिम को जाते-जाते पूर्व को चल पड़ते हैं।
‘‘नाज़िमुद्दीन के स्थान पर मुहम्मद अली बोगड़ा को प्राइम मिनिस्टर नियुक्त किया गया।
‘‘यह मुहम्मद अली बोगड़ा प्रथम प्राइम मिनिस्टर था जिसने अय्यूब खां को राजनीतिक भंवर में ला खड़ा किया। इससे पहले अय्यूब खां सैनिक उन्नति से ही सन्तुष्ट था और इस समय तक वह कमाण्डर इन चीफ बन चुका था। परन्तु बोगड़ा साहब इसे अमेरिका ले गये और वहां इसकी अमेरिका के वाइस प्रेज़िडेण्ट रिचर्ड निक्सन से भेंट करा दी। बस फिर क्या था? राजनीति एक छूत की बीमारी की भांति अय्यूब खां को लग गई।
‘‘रिचर्ड ने रूस का भय दिखाकर गिलगित्त और उत्तर पश्चिमी सीमाप्रान्त में अमरीकन सैनिक अड्डे बनाने की संधि की और ‘सीटो’ तथा ‘सैण्टों’ की संधियों में पाकिस्तान को सम्मिलित कर लिया।
‘‘नये संविधान के अनुसार सन् १९५४ में पाकिस्तान में निर्वाचन हुए तो पू्र्वी पाकिस्तान में मुस्लिम लीग को पराजित कर फजलुल हक शक्ति सम्पन्न हो गया। फजलुल हक अमेरिका विरोधी पक्ष का था। परिणाम यह हुआ कि बोगड़ा और अय्यूब खां ने पूर्वी पाकिस्तान के उद्योग क्षेत्रों में बंगाली और गैर-बंगालियों में बलवे करा दिये गये। इन बलवों को बहाना बना पूर्वी बंगाल के चीफ मिनिस्टर फजलुल हक को अपदस्थ कर वहां गवर्नर का राज्य स्थापित कर दिया और इस्कन्दर मिर्जा को, जो अभी तक मेजर जनरल ही था, पूर्वी पाकिस्तान का गवर्नर बनाकर वहां भेज दिया गया।
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