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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


इस समय तेज ने नज़ीर के वर्णन को समझने के लिए पूछ लिया, ‘‘तो तुम्हारा यह विचार है कि दोनों गुट मन में इस्लाम को विस्तार देने में रुचि नहीं रखते?’’

‘‘उनके मन में क्या है, यह कहना कठिन है। प्रत्यक्ष में ऐसा प्रतीत होता है। कि पाकिस्तान में अंग्रेज और अमरीकन कूटनीति परस्पर झगड़ रही है। सैनिक वर्ग अंग्रेज कूटनीति का आखेट बना हुआ है और असैनिक वर्ग अमरीकन खूटनीति का। इसमें हास्यास्पद बात यह है कि जिस भी गुट का जो भी व्यक्ति शक्ति प्राप्त करता है वह अंग्रेज का पक्ष छोड़ अमेरिका की ओर घूम जाता है। इसमें सबसे मुख्य कारण अमेरिका का धन और सैनिक सामग्री है। इंग्लैंड की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि वह इस क्षेत्र में अमेरिका को पछाड़ सके।

‘‘देखिये, लियाकत अली जिन्ना के पदचिह्नों पर चलता हुआ अंग्रेज कूटनीति में फंसा हुआ था। जिन्ना की मृत्यु के उपरान्त वह अमेरिका की कूटनीति के भँवर में फँस गया। अंग्रेज कूटनीति की कठ-पुतलियों ने लियाकत को क्षेत्र से बाहर कर दिया। पहले सन् १९५१ के आरम्भ में व्यापक विद्रोह का आयोजन करके और पीछे उसकी हत्या करके।

‘‘लियाकत के बाद अंग्रेज पिट्ठू नाज़िमुद्दीन शासन पर अधिकार पा गया, परन्तु अमरीकी धन और सैनिक सामग्री के लोभ में अंग्रेजी पक्ष को छोड़ने लगा तो पंजाब के गवर्नर गुलाम मुहम्मद ने सेना के बल से नाज़िमुद्दीन को पदच्युत करा दिया।’’

‘‘मगर नज़ीर!’’ तेजकृष्ण ने कहा, ‘‘तुम कहती हो कि नाज़िमुद्दीन भी अमेरिका की ओर झुक रहा था?’’

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