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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘इस सैनिक कार्यवाही के समाचार बहुत ही भयंकर रूप में अमेरिका में छपे और नाज़िमुद्दीन साहब को पदत्याग करने पर विवश कर गुलाम मुहम्मद प्राईम मिनिस्टर बना दिये गये।

‘‘इस समय नया संविधान लागू किया गया। संविधान को लागू करने के विषय में पूर्वी पाकिस्तान के नेता सुहरावर्दी इत्यादि अधिक उत्सुक थे। पूर्वी पाकिस्तान गुट जहां संविधान को सफल बनाने में यत्नशील था वहां वह अमेरिकन पक्ष लेता था। इस गुट के विपरीत पश्चिमी पंजाब और पठान ग्रुप जिसका सेना में बहुत प्राबल्य था, अंग्रेज के पक्ष में थे।

‘‘अमेरिका की नीति इस पठान और सैनिक गुट को रिश्वत दे-देकर अंग्रेज की ओर से तोड़-तोड़कर अपनी ओर करते रहना था। परिणाम यह होता था कि सैनिक पठान गुट में से जब भी कोई उच्च पद पर पहुंचता तो वह अमेरिका के प्रभाव में आ जाता।

‘‘इस पर दूसरा पक्ष एक अन्य शक्ति का प्रयोग करने लगा। यह शक्ति थी मुसलमान आम जनता। जनता के मस्तिष्क में चौदह सौ वर्ष के इस्लामी इतिहास ने इस्लाम के लिए मदात्य उत्पन्न कर रखा है। पाकिस्तान में यह एक महान शक्ति है। इस शक्ति का पक्ष लेकर अंग्रेज और अमेरिकन गुट एक-दूसरे पर प्रभुत्ता पाने का यत्न करते रहे हैं।

‘‘जब भी जिस गुट के अधिकारियों का प्रभाव बढ़ता, दुर्बल गुट ज़नता को भड़का देता और कहता कि शासन इस्लाम में बागी हो रहा है। दोनों गुटों ने इस्लाम का एक लक्ष्य नियत कर रखा था। वह था भारत एक गैर-इस्लामी राज्य है और इसका पाकिस्तान के पड़ोस में होना पाकिस्तान के लिये भय का कारण है। आम मुसलमान जनता में यह धारणा बनी हुई है कि पाकिस्तान का स्वत्व स्थिर रखने के लिए भारत को एक इस्लामी राज्य बनाना आवश्यक है। जनता की इस भावना से लाभ उठाने के लिये दोनों गुट, एक से एक बढ़कर हैं। दोनों भारत के विपरीत जहाज का नारा लगाते रहते हैं।’’

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