उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘परस्पर विरोधी विचार धाराओं का और यह तब तक चलता रहेगा जब तक विचार प्रवाह विपरीत दिशा में जाने वाला रहेगा।’’
‘‘पर माँ! आज मजहब को तो कोई मानता ही नहीं। सब इकानौमिक और पोलिटिकल, मेरा मतलब है कि आर्थिक और राजनीतिक बातों को ही जीवन का आधार मानते हैं।’’
‘‘इसी कारण मैं यह समझती हूं कि यदि हिन्दू-मुसलमानों में आर्थिक और राजनैतिक सुविधायें समान हो जायेगीं तो मैत्री हो जायेगी।’’
‘‘मैं तो इस लेख को टाइप कर पोस्ट कर आया हूं।’’
माँ लड़के के आर्थिक और राजनीतिक शब्दों पर विचार करने लगी थी।
मैत्रेयी ने कह दिया, ‘‘यही तो इस्लाम है। मेरा मतलब है कि इस्लाम एक आर्थिक और राजनीतिक विचार है और ये दोनों तृप्त न हो सकने वाली कामनायें हैं। कश्मीर तो क्या, पूर्ण भूमण्डल का राज्य प्राप्त कर सकने पर भी यह बनी रहेगी।’’
‘‘परन्तु पाकिस्तान में यह भावना प्रबल हो रही है कि कश्मीर कानून से और मानवता के नाते भी पाकिस्तान का अंग है। मैं समझता हूं कि यह उसे दे देने से कम से कम पचास-साठ वर्ष के लिए दोनों देशों में शान्ति बनी रहेगी।’’
‘‘देखिए जी!’’ मैत्रेयी ने कहा, ‘‘हिन्दुओं ने समझा था कि मुसलमानों का राज्य न रहने से हिन्दू-मुसलमानों में ऐक्य हो जाएगा। इस कारण जब अंग्रेज़ भारत में आये तो हिन्दुओं ने मुसलमानों को पराजित करने में अंग्रेज़ की सहायता कर दी।
‘‘फिर कुछ हिन्दू विद्वानों को समझ में आया कि कुरान की प्रशंसा कर देगे तो हिन्दू-मुसलमान ऐक्य हो जाएगा।’’
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