उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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तेजकृष्ण के नज़ीर के साथ चले जाने पर बागड़िया के मकान में सब एक दूसरे का मुख देखते रह गये। मोहनचन्द के मुख से अनायास ही निकल गया। ‘‘यह औरत तेज का अपहरण कर उसे ले भागी है।’’
‘‘क्या मतलब?’’ मिस्टर बागड़िया ने पूछा।
‘‘मतलब यह कि यह औरत तेजकृष्ण को ‘इलोप’ कर ले गयी है। यह हवाई जहाज में इसे मिली थी और इसकी शक्ल-सूरत और इसके हाव-भाव से तो मुझे अनुभवी वेश्या प्रतीत होती थी। वह उसे भगाकर ले गयी है।’’
‘‘तो वह उसकी ‘इण्टैंडिंड’ (निश्चत) पत्नी नहीं थी क्या?’’
‘‘वह तो यह थी।’’ शकुन्तला ने मैत्रेयी की ओर देखकर कह दिया, ‘‘हम दिल्ली से इससे भैया का विवाह देखने आये हैं। यह तो मार्ग में ही मिली है और आंधी बन तेज भैया को एक तिनके की भांति उड़ाकर ले गई है।’’
‘‘पर वह गया कहां है?’’
‘‘अब ड्राइवर आये तो पता चलेगा।’’
मिस्टर बागड़िया ने अपनी पत्नी यशोदा की ओर देख पूछ लिया, ‘‘तेज के पास नकद कितना कुछ था?’’
‘‘मुझे पता नहीं। दिल्ली में वह इसके लिए एक ‘रिंग’ खरीद कर लाया था और कह रहा था, माँ! मार्ग के लिए कुछ नकद जेब में ले चलना। मेरी तो जेब खाली हो गई है।’’
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