उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
बागड़िया ने कहा, ‘‘ठीक है! तुम अपना पता शकुन्तला को लिखा दो। हम कल तक तेज के विषय में पता कर तुम्हें सूचना भेज देंगे।’’
शकुन्तला ने पता लिखा तो मैत्रेयी मोटर में बैठ बागड़िया के साथ चली गई। मिस्टर बागड़िया क्राफर्ड ऐवेन्यू में जाकर पता करना चाहता था। इस पर भी वह मैत्रेयी को अपने साथ वहां ले जाना उचित नहीं समझता था। इस कारण वह पहले उसे सेन्ट्रल स्टेशन पर छोड़ने चला गया और उसे स्टेशन पर छोड़ स्वयं अपनी गाड़ीं में नज़ीर से मिलने चल पड़ा।
नज़ीर की माँ मिली और उसने बताया, ‘‘मिस्टर बागड़िया जूनियर मेरी लड़की नज़ीर से शादी कर उसे अपने साथ ले गया है।’’
‘‘कहां ले गया है?’’
‘‘वे कहते थे कि हनीमून के लिए जा रहे हैं। वह बताकर नहीं गये कि कहां जा रहे हैं।’’
‘‘मगर लड़के की जेब में तो एक पैसा नहीं था।’’
‘‘वह अपनी बीबी को लेकर पहले अपने अखबार के दफ्तर में गया था। मुमकिन है कि वहां से खर्चा ले गया हो।’’
‘‘लड़की के पास कितना कुछ था?’’
‘‘मुझे उसने बताया नहीं। कुछ तो होना ही चाहिए।’’
बागड़िया ने अपना पता लिखा दिया और कहा, ‘‘जब भी उनका पता मिले, मुझे टेलीफोन पर बतायें। मैं उसे खर्चे के लिए धन भेजना चाहता हूं।’’
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