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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


बागड़िया वहां से समाचार-पत्र के कार्यालय में पहुंचा और वहां से मैनेजर महोदय के क्लब में जा पहुंचा। वहां उसका पता कर उसके सामने जा खड़ा हुआ। मैनेजर फ्रैंक जानसन ने प्रश्न भरी दृष्टि में इस हिन्दुस्तानी की ओर देखा तो बागड़िया ने अपना नाम और तेज से अपना सम्बन्ध बता कर कहा, ‘‘मैं तेज के विषय में जानने आया हूं कि वह कहां गया है?’’

‘‘वह एक ‘सीक्रेट’ (गुप्त) मिशन पर गया है। इस कारण यह बताया नहीं जा सकता।’’

‘‘वह अकेला था अथवा उसके साथ कोई औरत भी थी?’’

‘‘हां, एक औरत थी। वह कौन थी?’’

‘‘मुझे पता नहीं। वह उस औरत को उसकी माँ के घर छोड़ने गया था और वहां से ही पता चला है कि वह समाचार-पत्र के कार्यालय को आया था।

‘‘मैं उस औरत की माँ के घर गया था। वहां से पता चला है कि तेज और उस औरत ने विवाह कर लिया है। मुझे इसमें कुछ धोखा-धड़ी मालूम हुई है। इसी कारण पूछने आया था।’’

मैनेजर इस समाचार से परेशानी अनुभव करने लगा। वह विचार कर रहा था कि यदि यह कोई संदिग्ध चरित्र की औरत है तो उसका ‘मिशन’ गुप्त कैसे रह सकेगा? अनिच्छित व्यक्तियों के हाथ में भी भेद जा सकता है।

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