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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


इस विचार पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उसने मिस्टर बागड़िया से कहा, ‘‘मैं कल तक पता कर आपको कम से कम यह बता सकूंगा कि मिस्टर तेज सही-सलामत वहां पहुंच गया है अथवा नही, जहां मैंने भेजा है।’’

बागड़िया ने अपने पते का कार्ड मैनेजर को दिया, और घर चला आया। उसने अपनी पत्नी, लड़की और दामाद को बताया, ‘‘नज़ीर की माँ ने बताया है कि बागड़िया जूनियर और नज़ीर ने विवाह कर लिया है और वे दोनों पति-पत्नी बन समाचार-पत्र से भेजे गए काम पर गए हैं।’’

इस पर शकुन्तला ने कह दिया, ‘‘पिताजी! हम कल प्रातःकाल स्विट्ज़रलैंड को जा रहे हैं। वहां से हम टेलीफोन द्वारा तेज भैया का समाचार पता करेंगे और यदि उसके विवाह का कुछ निश्चय हो गया तो हमें पता दीजिएगा जिससे हम आ सकें।’’

इस प्रकार बागड़िया और उसकी पत्नी यशोदा ही वहां रह गयीं। दिन पर दिन व्यतीत होने लगे और तेज का कोई समाचार नहीं आया। समाचार-पत्र के कार्यालय से पता चला कि तेज अपनी कही जाने वाली पत्नी के साथ वहीं पर है जहां भेजा गया था। वह अपने काम में लगा हुआ है। इससे अधिक वे नहीं बता सके।

जनेवा से शकुन्तला का टेलीफोन आया तो यशोदा ने समाचार-पत्र के कार्यालय से मिला समाचार बता दिया।

मैत्रेयी ने अपना समाचार नहीं भेजा। उसके गाइड ने उस द्वारा प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध पढ़ रखा था। मैत्रेयी की माँ के देहान्त का समाचार उसे भेजा जा चुका था। इस कारण उसने विद्यार्थी की माँ के निधन पर शोक प्रकट करने के उपरान्त शोघ-प्रबन्ध में अपने विचार से त्रुटिया प्रकट कीं और कहा कि वह त्रुटियों का समाधान, प्रमाण और युक्ति से करे।

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