उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तीन दिन तक शोध-प्रबन्ध पर विचार-विनियम के उपरान्त मैत्रेयी ने अपने गाइड को बताया, ‘‘मैं कुछ अधिक दिन तक ऑक्सफोर्ड में नहीं रह सकती। मेरी छात्र-वृत्ति की अवधि समाप्त हो गयी है। साथ ही भारत आने-जाने में मेरी बहुत बड़ी धन राशि व्यय हो गयी है। माँ के देहान्त हो जाने पर वहां से जो कुछ सहायता मिलती थी, वह भी बन्द हो रही है।’’
इस पर उसका गाइड मिस्टर विलियम साइमन ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें अस्थायी रूप में विश्व-विद्यालय में पढ़ाने का कार्य दिलवा सकता हूं। इसके लिए तुम्हें एक याचिका करनी पड़ेगी।’’
मैत्रेयी ने याचिका की तो उसे एक वर्ष के लिए सामान्य से वेतन पर विश्व-विद्यालय में संस्कृत शास्त्र पढ़ाने का काम दे दिया गया। इससे आर्थिक संकट निवारण होते ही वह हटकर अपने शोध-कार्य में उन न्यूनताओं की पूर्ति करने में लीन हो गयी जिनके लिए उसके गाइड ने कहा था।
कई दिन के उपरान्त यशोदा का पत्र आया और उससे पता चला कि तेज का पत्र आया है। वह अपनी पत्नी नज़ीर के साथ भारत में किसी स्थान पर रहता है। इतना और पता चला कि उसकी सेवायें समाचार-पत्र के अधिकारियों ने इंगलैंड की सरकार को दे रखी हैं। वह वहाँ पर प्रसन्न है।
इस पत्र का अर्थ यह था कि तेज और मैत्रेयी में अब विवाह की किसी प्रकार की आशा नहीं।
मैत्रेयी ने पत्र पढ़ा और फाड़कर रद्दी कागज फेंकने वाली टोकरी में डाल दिया।
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