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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


थीसेज में, मैत्रेयी शोध-कार्य में गाइड ने यह कहा था कि क्योंकि मैत्रेयी का शोध-कार्य आक्सफोर्ड विश्व-विद्यालय में पूर्व कार्य करने वालों की कई धारणाओं के विपरीत विचार व्यक्त करता है, इस कारण उसे उन धारणाओं के अशुद्घ होने में अपने पूर्ण प्रमाण और युक्तियों को विस्तार से लिखना चाहिए। इन प्रमाणों और युक्तियों पर भारी आपत्ति की जाएगी।

मैत्रेयी अपने शोध-प्रबन्ध की इस विशेषता को जानती थी। उसने पहले भी उन विषयों पर बहुत कुछ लिखा था। परन्तु अब वह एक-एक विषय को लेकर उस पर गाइड से विचार करने लगी।

सबसे विकट विषय था वेद का आदि मानव सृष्टि में हो सकना सिद्ध करना। इस पर मैत्रेयी ने युक्ति की थी, परन्तु मिस्टर विलियम साइमन को वे युक्तियां अवैज्ञानिक (अन-सायंटिफि) प्रतीत हुई थीं। वह इन पर कुछ अधिक विवेचना और वह भी किसी वैज्ञानिक आधार पर चाहता था।

मैत्रेयी को अपना लिखा हुआ पढ़ने पर यह प्रतीत हुआ था कि लिखने और पढ़ने वाले में कुछ आधार भूत अन्तर है। तभी एक बात जो वह सर्वथा युक्तियुक्त मानती है, पढ़ने वाला उसे अपूर्ण युक्ति ही मानता है। इस कारण वह बिना यह बताये कि वह गाइड महोदय को किसी प्रकार की शिक्षा देने आयी है, जिज्ञासा के भाव में गाइड से मिलकर प्रश्न पूछने लगी।

एक दिन मैत्रेयी ने पूछ लिया, ‘‘विज्ञान-वेत्ता यह मानते हैं कि सृष्टि के आरम्भ में वायु-मण्डल में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक थी। इसमें वे युक्ति देते हैं कि नाइट्रोजन के उच्च स्तर के संयुक्त पदार्थ (Complex Compounds) अभी नहीं बने थे। उस अधिक मात्रा में नाइट्रोजन और आक्सीजन के होने से उनमें संयुक्त पदार्थ बनने लगे थे।’’

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