उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘हां, ऐसा माना जाता है।’’
‘‘यह अनुमान ही है अथवा प्रमाण सिद्ध है। यह तो माना कि नाइट्रोजन और आक्सीजन प्रचुर मात्रा में थी, परन्तु ऐसा होने से संयुक्त पदार्थ बने तो केवल इन्फरेन्स (अनुमान) मात्र ही है।’’
‘‘बिना अनुमान के तो किसी परिणाम पर पहुंचा ही नहीं जा सकता।’’
‘‘परन्तु श्रीमान्! अनुमान के लिए कुछ तो आधार होना चाहिए। आजकल सामान्य नाइट्रोजन के संयुक्त पदार्थों से बिना किसी जीवित प्राणी की सहायता के यह होता देखा नहीं जाता। यह भी कहा जाता है कि वायु-मण्डल की नाइट्रोजन और आक्सीजन को मिलाने के लिए जीवित वनस्पति अथवा किसी जीवित कीड़े-मकौड़े की आवश्यकता रहती है। उस समय यह सब बिना किसी प्राणी की सहायता के बने, यह अनुमान तो निराधार हो जाएगा।’’
‘‘तो तुमने इस सब की प्रक्रिया का कुछ आधार समझा है?’’
‘‘जी। हम, मेरा मतलब है कि प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जो कुछ आज और जिस प्रकार हो रहा है, वैसा ही होना आदि सृष्टि में सम्भव मानना चाहिए।
‘‘नाइट्रोजन, आक्सीजन, हाइड्रोजन और जल के मिलने से जो रासायनिक अणु बनते हैं, वे आज भी हैं। विद्युत, जल, हवा इत्यादि भी वैसे ही उपस्थित हैं जैसे कि तब थे। मात्रा में तो अन्तर हो सकता है, परन्तु मिलने की विधि में अन्तर नहीं होना चाहिए।’’
मिस्टर साइमन मुख देखता रह गया। वह कुछ देर तक आंखें मूंद विचार कर कहने लगा, ‘‘ठीक है। तुम अपने विचारों को अधिक व्याख्या से लिखकर लाना और फिर उसमें उनके क्रियान्वित होने का विधि-विधान वर्णन करो तो मैं अपनी सम्मति दे सकता हूं।’’
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