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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...

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मैत्रेयी को इसके लिए पुनः अनेक बार अपने गाइड से मिलकर विचार करना पड़ा। परन्तु इन भेंटों में उसे कुछ ऐसा अनुभव हुआ कि मिस्टर विलियम साइमन उससे पहले से अधिक अनुराग रख रहा है। लेख पर चर्चा करते हुए मैत्रेयी अपनी अकाट्य युक्तियों का वर्णन करती थी तो मिस्टर साइमन मन्त्र मुग्ध उसके मुख पर देखता रह जाता था।

मिस्टर साइमन की इस मानसिक अवस्था को वह उस दिन से ही अनुभव करने लगी थी जब से वह अपनी माता के देहावसान के उपरान्त दिल्ली से लौटी थी। पहले तो वह इसमें अपने मातृ विहीन हो जाना कारण समझती रही। उसने उसको कहा था कि वह माता के अतिरिक्त अन्य कोई आश्रय स्थान नहीं रखती। इससें किसी ने मन में भी सहानुभूति उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक था। इस सहानुभूति का ही परिणाम मैत्रेयी ने यह समझा था उसे विश्वविद्यालय में प्राध्यापक का स्थान दिलवाया गया है। इससे उसको यह समझ में आया कि उसके आर्थिक अभाव की पू्र्ति ही लक्ष्य है। परन्तु कुछ ही भेंटों में जब साइमन उसकी अन्य सुख-सुविधाओं की चिन्ता करने लगा। तो उसे केवल एक छात्रा के साथ सहानुभूति के अतिरिक्त कारण इसमें प्रतीत होने लगा।

मैत्रेयी को दिल्ली से लौटे अभी दो मास भी नहीं हुए थे कि एक दिन बात स्पष्ट हो गयी। प्रबन्ध पर चर्चा हो जाने के उपरान्त साइमन ने नित्य की भांति उसके साथ उसके खान-पान, वस्त्रादि और दिनचर्या पर वार्तालाप करते हुए कहा, ‘‘मैंत्रेयी! तुम्हारे अपने देश में तो इस समय तक तुम्हारा विवाह हो जाना चाहिए था।’’

‘‘हां। परन्तु आचार्यवर! यह तब ही होता यदि यह शोध-कार्य न कर रही होती। विवाहित जीवन में इतना कठोर प्रयत्न न किया जा सकता।’’

‘‘परन्तु हमारे देश में तो विवाहित लोग भी शोध-कार्य कर रहे हैं।’’

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