उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘आपका देश महान् है। उस देश के रहने वाले भी महान् ही कहे जा सकते हैं।’’ इतना कहते-कहते मैत्रेयी मुस्करायी और प्रोफेसर को अपने मुख पर लालसा भरी दृष्टि से देखने हुए कुछ वही समझी जो तेजकृष्ण की दृष्टि में उस दिन था, जब उसने विवाह का प्रस्ताव किया था।
इस कारण वह गम्भीर हो गयी। उसने देश और देशवासियों को महान् तो व्यंगात्मक भाव में कहा था, परन्तु साइमन के मनोभावों का अनुमान लगा वह गम्भीर हो गयी थी।
साइमन ने उसे गम्भीर होते देख कह दिया, ‘‘और देवी! उस महान् देश का एक महान् व्यक्ति भी यह समझने लगा है कि अब तुम्हें अपने विवाह की ओर दृष्टि करनी चाहिए।’’
‘‘आचार्यवर!’’ उसने अपने मन में आदर के भाव को प्रकट करते हुए कहा, ‘‘कोई उपयुक्त साथी मिलने पर यह भी विचार रखती हूं।’’
‘‘उपयुक्त में तुम कौन-कौन से गुणों का समावेश करती हो?’’
‘‘आज आपने यह चर्चा कर मुझे विचार करने में प्रेरणा दी है कि अब मैं विवाह करने के विषय पर भी ध्यान दूं। अब मैं देखूंगी कि अपने जीवन साथी में कौन-कौन से गुण होने चाहिए।’’
‘‘तो तुमने अभी तक इस विषय पर कभी विचार नहीं किया?’’
‘‘जी नहीं। परन्तु बिना विचार किये मार्ग में चलते एक व्यक्ति मिल गये थे और वह कहने लगे कि वह मेरे जीवन साथी बनेंगे। मैंने उनके कहने पर विश्वास कर विवाह का वचन दे दिया था। भगवद् कृपा से शीघ्र ही उनके कथन में सार का अभाव स्पष्ट हो गया। विवाह होने से पूर्व ही वह किसी उड़ती तितली के पीछे चल दिये।
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