उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘इसलिए अब मैं इस विषय पर पूर्व की भांति साथी के गुण और लक्षण का स्पष्ट निर्धारण किये बिना किसी पर विश्वास नहीं करूंगी।’’
‘‘यही मैं तुमसे आशा करता हूं। जैसे तुम जगत् रचना और ज्ञान-विज्ञान के विषय में विश्लेषणात्मक बुद्धि रखती हो, वैसे ही तुम्हें अपने और अपनी रचना शक्ति के विषय में विचार करना चाहिए।’’
‘‘यह ठीक है श्रीमान्! परन्तु मैं तो यह विचार कर रही हूं कि आज इस विषय पर चर्चा का अवसर कैसे उत्पन्न हो गया?’’
‘‘अभी-अभी तुमने एक वेद मन्त्र पढ़ा है कि आदि काल में पृथ्वी गर्भ धारण करने की और सूर्य बीजारोपण की सामर्थ्य रखता था, जो अब नहीं है। इससे विचार उत्पन्न हुआ है कि यह सामर्थ्य तुममें और मुझमें भी तो सदा रह नहीं सकती। इस कारण जीवन का यह कार्य भी कर दिया जाये तो ठीक ही होगा।’’
‘‘परन्तु भगवन्! पृथ्वी ने जो गर्भ धारण किया था उसके उपरान्त सूर्य पृथ्वी का सम्बन्ध टूटा नहीं। वह वैसे ही चलता रहा है। यह गुण भी तो पति-पत्नी में होना चाहिए।’’
‘‘हां, इसी को विवाह कहते हैं। यद्यपि पृथ्वी अब बूढ़ी हो गर्भ धारण की सामर्थ्य नहीं रखती, इस पर भी–जैसा कि वेद में लिखा है कि परमात्मा की कृपा से सूर्य देवता पृथ्वी के लिए दोनों अश्विनों और पुष्टि करने वाले दोनों हाथों से कर्म कर रहा है।१ (१. देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। - यजुः१-२१)
‘‘क्या कार्य कर रहा है? इस विषय में भी वेद कहता है, वनस्पतियों से उनमें रस भरने का कार्य कर रहा है।२ रखने वाला पति हो तो विवाह हो जाना चाहिए।’’ ( २. सं वपामि समापऽओषधीभिः समोषधयो रसेन। -यजु १-२१)
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