उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘धन्यवाद है। अब मैं इसी दिशा में विचार करूंगी और ऐसे सूर्य की प्रतीक्षा में रहूंगी।’’
‘‘यदि तुम चाहो तो इस ‘रिसर्च’ में भी मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूं।’’
मैत्रेयी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘हां, यदि आप अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।१’’ (१.बिना फल की इच्छा के कर्म करते हैं।)
‘‘ठीक है। ऐसा ही करने का यत्न करूंगा। वास्तव में ‘रिसर्च’ करने वाले अथवा ‘रिसर्च’ में सहायक होने वाले तो निष्काम भाव वाले ही होने चाहियें। इसी भाव से तुम अपने लिए पति की ‘सर्च’ करोगी और मैं तुम्हारी सहायता करने का यत्न करूंगा।’’
‘‘श्रीमान् जी! मैं आपकी इस विषय में भी सहायत के लिए आभारी रहूंगी।’’
इस प्रकार शोध-प्रबन्ध के कार्य के साथ-साथ मिस्टर साइमन अपने लिए पत्नी की खोज में यत्न करते रहे।
शोध-प्रबन्ध तैयार होने तक और टाईप होने तक यह लगभग निश्चय ही था कि मैत्रेयी का विवाह अपने गाइड से होने वाला है। यह निश्चय अभी इन दोनों के ज्ञान में ही था। इस विचार को अभी इन्होंने अपने परिचितों और मित्रों में प्रकट नहीं किया था। इस बात को मैत्रेयी की इच्छानुसार ही रखा गया था। वह चाहती थी कि उसके शोध-प्रबन्ध के स्वीकार हो जाने के उपरान्त ही विवाह की घोषणा की जाये। वह यह बात डिग्री मिलने में पूर्व विख्यात नहीं होने देना चाहती थी।
मैत्रेयी को दिल्ली से लौटे छः मास हो चुके थे कि एक दिन यशोदा उसे ढूँढ़ती हुई ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आ पहुंची।
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