उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
मैत्रेयी संस्कृत पढ़ाने का कार्य करती थी और उससे उसको दो सौ पौण्ड मासिक वेतन मिलता था। वह प्रोफेसरों के लिये बने ‘फ्लैट्ल’ मंल रहती थी। यशोदा इण्डौलोजी विभाव में पहुंची तो वहां से उसको पता चला कि मैत्रेयी का शोध-प्रबन्ध ‘रिसर्च कौंसिल’ मैं विचारधीन है।
‘और वह स्वयं कहां है?’’ यशोदा ने पूछ लिया।
‘‘आप उसकी क्या लगती है?’’
‘‘मैं उसकी आण्टी हूं।’’
‘‘आपको पहले कभी देखा नहीं?’’
‘‘मैं उसके साथ ही भारत से इस बार आयी थी। बीच में मैं भारत चली गयी थी। अब कई महीने के उपरान्त पुनः आयी तो उससे मिलने चली आयी हूं।’’
कार्यालय के क्लर्क से यह सब बात हो रही थी। वह मैत्रेयी का पता बताने से पूर्व मिलने के लिए आने वाले का मिलने में उद्देश्य जानना चाहता था। जब उसे समझ में आ गया कि यह प्रोफेसर मैत्रेयी की सम्बन्धी है तो उसने बता दिया, ‘‘वह प्रोफेसरों के लिए बने ‘फ्लैट्स’ ११।३४ में रहती है। इस समय अपने निवास स्थान पर होगी।’’
यशोदा टैक्सी में आयी थी। अतः वह उसी टैक्सी में मैत्रेयी के ‘फ्लैट’ पर जा पहुंची।
फ्लैट के बाहर लगी घण्टी का बटन दबाया तो मैत्रेयी ने द्वार खोल बाहर झांका और यशोदा को खड़े देख लपक कर उसके चरण स्पर्श करने लगी। यशोदा ने उसे उठा कर गले से लगा पीठ पर हाथ फेर प्यार देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पत्र की छः महीने से प्रतीक्षा कर तुम्हें ढूंढ़ने आयी हूं।’’
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