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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


एक ऐसी ही यात्रा पर चौधरी का लड़का बड़ौज गया हुआ था। वह तीन दिन की यात्रा के पश्चात् घर लौटा। अन्तिम पड़ाव की दस कोस की यात्रा कर वह अँधेरा हो जाने के पश्चात् बस्ती में पहुँचा। वह अभी बस्ती से कुछ अन्तर पर ही था कि उसको बिन्दू एक पेड़ के नीचे खड़ी उसकी प्रतीक्षा करती मिली। बिन्दू को विदित था कि बड़ौज आ रहा है और वह उसके आने के समय का अनुमान लगाकर मार्ग-तट पर आ खड़ी हुई थी।

बड़ौज को सन्देह हुआ तो वह ठहर गया और अपने थैले से, जो उसने कन्धे से लटकाया हुआ था, एक लम्बी-लम्बी चमकदार वस्तु निकाली और उसको उस ओर कर दिया जिधर से उसको आहट सुनाई दी थी। वह बैटरी की टॉर्च थी जिसे वह लुमडिंग से दो रुपये में खरीदकर लाया था। बड़ौज ने बटन दबाया तो प्रकाश हो गया और बिन्दू सामने खड़ी मुस्कराती दिखाई दी। इस बस्ती में यह टॉर्च पहली बार आई थी और इसके प्रकाश से चकाचौंध बिन्दू ने अपनी आँखों के आगे हाथ धर लिया था।

बड़ौज ने वटन पर से अपना अँगूठा उठाया और अँधेरा हो गया। बिन्दू लपककर उसके गले में बाँह डाल उससे लिपट गई। बड़ौज ने कसकर आलिंगन किया और बोला, ‘‘यह मैं तुम्हारे लिए लाया हूँ।’’

‘‘सत्य?’’

‘‘हाँ, यह एक नई प्रकार की लालटैन है, जो बिना तेल के जलती है।’’

‘‘परन्तु मुझे तो यह नहीं चाहिए।’’

‘‘तो तुम्हें क्या चाहिए?’’

‘‘मेरा दिल तो तुमसे विवाह करने के लिए करता है।’’

‘‘परन्तु अभी तुम्हारी विवाह के लायक आयु तो हुई नहीं।’’

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