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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘वह वहाँ नौकरी करता है।’’

‘‘तुम तो बहुत ही सुन्दर निकल आई हो।’’

‘‘मौसी! तुम्हारी जितनी नहीं। तुम तो इस आयु में भी अद्वितीय हो।’’

इस प्रशंसा से सोना का मुख लाल हो गया। उसने बात बदलकर अपनी कहानी बता दी और फिर बिन्दू से पूछने लगी, ‘‘कहाँ रहती हो?’’

‘‘यह ‘ग्राण्ड होटल’ में ठहरे हैं।’’

‘‘वापस जाते समय लुमडिंग से चलोगी तो मैं तुम्हारे साथ अपने लड़के से मिलने के लिए चलूँगी।’’

‘‘साहब यहाँ से कलकत्ता और बम्बई चलेंगे। अगर मैं उसके साथ न गई तो तुम्हारे साथ चलूँगी।’’

दूसरी ओर जब बिन्दू और सोना गले मिलीं तो सोफी ने स्टीवनसन से पूछा, ‘‘यह लड़की तो यूरोपियन प्रतीत नहीं होती।’’

‘‘यह मेरी सेक्रेटरी है। यह कहती है कि वह औरत इसकी सास है।’’

‘‘ओह! वह औरत मेरी नौकरानी है।’’

स्टीवनसन ने देखा तो बोला, ‘‘यह औरत तो ग्राण्ड ब्यूटीफुल है।’’

‘‘तुम्हारी सेक्रेटरी तो इससे अधिक ही सुन्दर है।’’

‘‘वह युवा है। यह बड़ी आयु की होने पर भी बहुत सुन्दर है।’’

‘‘यह मेरे हसबैण्ड की मिस्ट्रैस है।’’

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