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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘सत्य? यह तो उससे बड़ी आयु की है।’’

‘‘हाँ, और इसका पति भी हमारे घर में ही रहता है। परन्तु धन और बढ़िया शराब ने ऐसा कुछ कर दिया है कि जिसकी मुझको आशा नहीं थी।’’

‘‘मैं लुमडिंग में आया तो तुम्हारे पति को बधाई दूँगा। परन्तु क्या तुम उससे नाराज़ नहीं हो?’’

‘‘मुझको आवश्यकता अनुभव नहीं होती। मुझे इससे सुख अनुभव होने लगा है।’’

स्टीवनसन ने बिन्दू के साथ अपने सम्बन्धों के बारे में कुछ नहीं बताया। सोफी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इस लड़की को वहाँ लेकर गए तो जनरल साहब इसको छोड़ेंगे नहीं।’’

‘‘यह लड़की बहुत नेक है और और अपने पति पर इसकी निष्ठा अटूट है।’’

स्टीवनसन सब कुछ बता देता, परन्तु वह सब कुछ तो बिन्दू से राय करके ही बता सकता था। बिन्दू ने कह दिया, ‘‘मैं नहीं चाहती कि इस औरत को मेरे विषय में ठीक बात बताई जाए। मैं इस देश से, जहाँ हमारे सजातीय रहते हैं, दूर चली जाना चाहती हूँ। मुझे भय है कि ये लोग मुझे मार डालेंगे।’’

इस सम्भावना से स्टीवनसन काँप उठा। बिन्दू उसको बहुत प्रिय हो गई थी। वह उसको अपनी जीवनसंगिनी ही समझ रहा था।

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