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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


वकील ने बताया कि कानून धनिक की सहायता नहीं कर सकता। यह सुनकर धनिक, चीतू और लुग्गी ने जंगल में जाने का निर्णय कर लिया, उनका विचार इस बात को आगामी पूर्णिमा के दिन होने वाली बड़ी पंचायत में रखने का था।

धनिक और लुग्गी को बस्ती में वापस लेने में चीतू को किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हुई। पंचायतवालों को उसकी सूझ-बूझ पर विश्वास था। चीतू ने कबीले के व्यापार के लिए एक कबीले की दुकान खोल दी थी। उसको एक घोड़ा-ठेला ले दिया था, जिस पर माल लादकर कभी लुमडिंग और कभी सिलचर तक ले जाया जाता था। अब कबीले के सब परिवारों को नगरों में जाने की आवश्यकता नहीं थी। वे अपनी खालें, हड्डियाँ तथा जड़ी-बूटियाँ इस दुकान में दे देते थे। वे माल को लादकर नगरों को ले जाते थे और रुपया वसूल कर, जिसका जितना होता था, दे देते थे।

इससे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधर रही थी। इस कबीले की सुधरी हालत को देखकर ही दूसरे कबीले के लोग इनकी पंचायत में आने के लिए तैयार हुए थे।

फिर भी चीतू की पूर्ण बुद्धि और चतुराई कबीले वालों को यह समझाने में सफल नहीं हुई कि सोना और बिन्दू के लिए झगड़ा न किया जाए। सब-के-सब स्त्री-पुरुष अपने कबीले की स्त्रियों को वापस लाने के लिए लड़ मरने की बात करते थे।

पंचायत ने निर्णय दिया कि अंग्रेज़ी सरकार को लिखा जाए कि इन दोनों औरतों को वापस किया जाए। यदि वे वापस न करें तो एक दिन दो गोरी औरतों को चुरा लिया जाए और जब तक सोना और बिन्दू वापस नहीं कर दी जाती तब तक उन औरतों को यहाँ रखा जाए। फिर भी कुछ न हो, तो उनके दो युवको का, जो उनको पसन्द करें, विवाह कर दिया जाए।

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