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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


इस सूचना के मिलने पर इनको छुड़ाने के लिए जनरल ने सैनिक अभियान की स्वीकृति माँगी। हिन्दुस्तान में ब्रिटिश सरकार की पूर्ण मशीनरी क्रियाशील हो गई। एक ओर सैनिक अभियान के लिए माइकल को कमाण्ड मिला और दूसरी ओर वाइसराय के एक सचिव सर भूपेन्द्रनाथ को नागाओं को समझाने के लिए उनके पास भेज दिया गया।

चीतू ने महापंचायत बुलाई जिसमें तीन सौ के लगभग कबीलों के पंच एकत्रित हो गए। पंचायत पूर्णिमा के दिन बैठी और कई बातों के विषय में चीतू की सम्मति से निर्णय हुए। परन्तु जब सोना और बिन्दू का प्रश्न उपस्थित हुआ तो चीतू की सम्मति को स्वीकार नहीं किया गया। यों तो प्रायः सब कबीलों की लड़कियाँ और लड़के ईसाई बनाने के लिए बरगला कर ले जाए गए थे और अब भी समय-समय पर यह सब होता रहता था, परन्तु सोना और बिन्दू की बात नई-नई थी। अतः इनको छुड़ाने के लिए एक युद्ध-समिति बना दी गई।

इस युद्ध-समिति ने अंग्रेज़ सरकार और ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर युद्ध के योग्य सब युवकों को एकत्रित कर लिया और दूसरी ओर दस मनचले युवकों को दो अंग्रेज़ औरतों के अपहरण के लिए भेज दिया।

युद्ध-समिति का विचार था कि इस प्रकार वे अपनी औरतों को छुड़ाने में सफल हो जाएँगे।

मिसेज़ स्ट्रिकी और मिस स्ट्रिकी के अपहरण के दो सप्ताह के भीतर ही सर भूपेन्द्र एक सुदृढ़ सैनिक टुकड़ी के साथ महानदी के तट पर नाग सैनिकों के एकत्रित होने के स्थान से पाँच मील के अन्तर पर पहुँच, डेरा डालकर बैठ गया। अगले दिन उसने दो स्काउटों के हाथ नागाओं के पास सन्देह भेजा कि सरकारी सचिव उनसे मिलना चाहता हैं।

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