उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
हर आन है इक ख्वाबे गिराँ ऐ साकी।।
अपने को कही रख के मैं भूला हूँ जरूर।।
लेकिन यह नहीं याद कहाँ ऐ साकी।
‘‘क्या सफाया किया है इल्मों हुनर का इस मरदूद शायर ने। कहता है दुनिया का सब ज्ञान और विश्वास भ्रम है। हम जब किसी की प्रतीक्षा करते हैं तो वह एक लम्बा स्वप्न है। वह कहता है वह स्वयं को कहीं रखकर भूल गया है किन्तु यह नहीं जानता कि कहाँ रखकर भूल गया है।’’
‘‘क्या कहना है इस नाजुक खयाली का? शायर साहब ने स्वयं को कहीं रख दिया है और उनको याद नहीं आ रहा कि कहाँ?’’
‘‘मेरा ख्याल है कि इसमें विचार-सूक्ष्मता की ओर आपका ध्यान नहीं गया।’’
‘‘क्या विचार-सू्क्ष्मता है इसमें?’’
‘‘देखिए, यह पार्थिव ज्ञान एक सुई के बनाने से लेकर एटम बम बनाने तक और सांसारिक विश्वास, यह मेरा लड़का है अथवा मेरी माँ-बहन इत्यादि है, यह सब भ्रम है।’’
‘‘अर्थात् ये रिश्ते नहीं है?’’
‘‘हैं तो, परन्तु ये वे नहीं जो दिखाई देते है। एक घूँट जल चित्त को शान्ति देता है। परन्तु इस एक घूँट जल में हाइड्रोजन है और दूसरी ओर हाइड्रोजन बम है जिससे एक क्षण में दिल्ली-जैसा नगर भस्म हो सकता है। जल की शीतलता अनुभव होती है परन्तु इसकी वास्तविकता का तो ज्ञान नहीं होता।’’
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