उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
यहीं पर बात समाप्त हो गई। अगले दिन सुदर्शनलाल, जो स्वयं डी० एस-सी० की उपाधि से विभूषित था, अपनी यूनिवर्सिटी के मापदण्ड से एक अनपढ़ स्त्री के प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ने लगा।
सुमति देखती थी कि उसका पति नित्य मोटी-मोटी नई पुस्तकें उठाकर लाता है और उनको पढ़कर उनमें से नोट्स लेता रहता है। इस प्रकार अब वह सारा समय, जो वह अपनी पत्नी के मधुर-भाषण, साहित्यिक उद्धरण अथवा कवियों और शास्त्रकारों के कथन सुनने में व्यय किया करता था और उसके रसास्वादन का आनन्द लिया करता था, उनको पढ़ने में व्यतीत कर रहा था।
सुदर्शन रसायनशास्त्र का विद्वान् था। वह जानता था कि जब तक वह किसी वस्तु को टैस्ट-ट्यूब में डालकर प्रमाणित नहीं कर लेता, तब तक वह उसे स्वीकार नहीं करता। जब भी कोई अनुसन्धानकर्त्ता किसी परीक्षण को व्याख्या-सहित नहीं लिखता और उसके परीक्षण को जब तक अन्य प्रयोगशालाओं में दोहराया नहीं जाता, तब तक उसको सत्य नहीं माना जाता।
इसी आधार पर वह प्राणिशास्त्र की पुस्तक पढ़-पढ़कर खोज रहा था कि उसका किसी वैज्ञानिक द्वारा किया परीक्षण किसी पुस्तक में मिल जाए जिसमें वह किसी एक प्रकार के जन्तु को दूसरे प्रकार का जन्तु बना सका हो। उस चुनौती को स्वीकार किए दो मास हो चुके थे और तब से सुदर्शन इस विषय पर निरन्तर छान-बीन कर रहा था। सुमति समझ रही थी कि उसकी साधारण माँग पर उसका पति दिन-रात अपनी आँखों की ज्योति खर्च कर रहा है।
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