उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘अच्छा, बताइए कि विकासवाद को मानने के लिए कौन-सा तजुर्बा किया गया था?’’
‘‘किया क्यों नहीं गया?’’
‘‘बताइए, कब, किसने किया?’’
सुदर्शन तो रसायनशास्त्र का ज्ञाता था। उसने प्राणिशास्त्र नहीं पढ़ा था। यद्यपि वह सब विद्वानों को विकासवाद के आधार पर बड़े-बड़े वक्तत्य देते सुन चुका था। इतिहास के विद्वानों ने तो विकासवाद को सत्य मानकर उसके अनुसार मानव-इतिहास पर सहस्त्रों पुस्तकें लिख डाली थीं, परन्तु तजुर्बा तो उसको कोई भी ज्ञात नहीं था। उसने कह दिया, ‘‘सुमित! तो तुम समझती हो कि इस युग के सब विद्वान् अनर्गल, अप्रमाणित और असिद्ध बातों को सिद्ध मान रहे हैं?’’
‘‘जी नहीं। मैं कुछ नहीं जानती। मैंने तो विज्ञान पढ़ा नहीं। पण्डित रघुनन्दन शर्मा की एक पुस्तक ‘वैदिक सम्पत्ति’ मैंने पढ़ी है। उसकी बात ही मैं आपको कह रही थी कि इस युग के वैज्ञानिक अपने भ्रान्त मन की बात को तो बिना प्रमाण भी मान जाते हैं। इसी से विकासवाद में कोई परीक्षण बताइए जो विकासवाद को सिद्ध कर सके।’’
‘‘अच्छी बात है, कल मैं अपने विश्वविद्यालय के पुस्तकालय से इस विषय की कुछ पुस्तकें लाकर इस विषय में विद्वानों का मत बताऊँगा।’’
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