उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
सुमति ने नलिनी की ओर क्षण-भर देखा और फिर वह रक्त से लथपथ मुख धोने के लिए बाहर सहन में लगे नल पर चली गई।
नलिनी ने अपने पति को चिचियाते देखा तो बोली, ‘‘अब चुप करो। बहुत शोर मचाया तो घर-भर यहाँ एकत्रित हो जाएगा। मैं अभी इसकी ‘ड्रैसिंग’ किए देती हूँ।’’
सुमति मुख धोकर बाहर बैठक–घर में गई तो नलिनी पति को नल पर ले गई। उसकी बाँह के घाव पर से उसने रक्त धो डाला। तदुपरान्त वह उसे भीतर ले आई और अपनी अलमारी में से ‘मर्करी क्रोम’ की शीशी और रुई निकाल घाव पर दवाई लगाने लगी।
कृष्णकान्त को पीड़ा तो बहुत हो रही थी, परन्तु घर में बदनाम हो जाने के डर से पीड़ा को भीतर-ही-भीतर सहन कर रहा था। जब ओषधि लग गई तो नलिनी ने दवाई में रुई भिगो घाव पर रख ऊपर से रूमाल बाँध दिया।
जब वह रूमाल बाँध रही थी तो उसकी दृष्टि कृष्णकान्त के गाल पर चली गई। वहाँ पर उँगलियों के चिह्न और सूजन देख वह पूछने लगी, ‘‘यह गाल पर क्या हुआ है?’’
‘‘तुम्हारी सखी के प्यार का चिह्न है।’’
‘‘चुप रहिए। ऐसी बात करते हुए लज्जा नहीं आती? क्या हो गया था आपको? एक औरत से पेट नहीं भरा था?’’
‘मर्करी क्रोम’ के लगाने से बाँह के घाव की पीड़ा कुछ कम हो गई थी और दूसरे हाथ से कृष्णकान्त नलिनी की साड़ी का आँचल अपने मुख की हवा से गरम करके गाल को सेंकने लगा था।
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