उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
बिखरे हुए घी को एकत्रित करने की बात थी। नलिनी ने कहा, ‘‘अच्छी बात है, चलिए आप अपने लॉज का सामान ले आइए और मैं होटल से अपना ट्रंक ले आती हूँ। भैया-भाभी के जाने पर मकान ढूँढ़ना आरम्भ कर देंगे। तब सामान मँगवा लेंगे और साथ ही मैं अपने लिए काम भी ढूँढूँगी।’’
‘‘तुम कितने दिन तक काम कर सकोगी?’’
‘‘अभी चार महीने कर ही सकती हूँ।’’
‘‘मैं समझता हूँ कि अब तो प्रसव के बाद ही नौकरी ढूँढ़नी और करनी उचित होगी।’’
‘‘आपको इस समय कितना वेतन मिलता है?’’
‘‘मेरी नौकरी छूट चुकी है। इस विषय में मैंने तुम्हें लिखना उचित नहीं समझा।’’
‘‘तो निर्वाह किस प्रकार होगा? आपके पास कुछ जमा है?’’
‘‘इसीलिए तो मैं तुमको लेने के लिए नहीं आ रहा था और कभी मकान की मरम्मत और कभी फर्नीचर लगाने के बहाने से तुम्हारा यहाँ आना टालता रहा।’’
‘‘अच्छी बात है। किन्तु श्रीमानजी! कल से आप किसी काम की खोज में लग जाइए, तब तक मैं आपके घर का प्रबन्ध करूँगी।’’
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