उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
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नलिनी समझ गई थी कि उसे अपनी योग्यता से ही काम चलाना पड़ेगा। दिल्ली से चलते समय वह समझ रही थी कि प्रसवकाल तक वह किसी प्रकार का काम नहीं करेगी। अपने स्कूल की अथवा कुछ समय तक किसी स्कूल में नौकरी की योजना बच्चा हो जाने के उपरान्त ही चलायेगी। परन्तु यहाँ की स्थिति देख उसे अपनी योजना में आमूल-चूल परिवर्तन करना पड़ा था। वह समझ गई थी कि यह पति तो किसी भी प्रकार से जीवन का आश्रम नहीं बन सकता। अतः उसने प्राइवेट स्कूल की योजना तुरन्त ही चालू करने का विचार कर लिया। वह जानती थी कि अभी परीक्षा को चार मास से अधिक शेष हैं और उसके प्रसव को अभी छः मास से अधिक हैं। अतः वह मैट्रिक की परीक्षा देने वालों के लिए सहायक स्कूल तो खोल ही सकती है।
इतना विचार कर उसने पुनः अपने पति की ओर देखा और अपनी योजना में उसके स्थान का निर्णय करने लगी।
उसके अपने बैंक में लगभग दो हज़ार रुपए जमा थे। आते समय उसकी माँ ने अपनी बहु से छिपाकर उसको दो सौ रुपए दिए थे। वे रुपए उसके पास ही थे। इसके अतिरिक्त भी कुछ था। अतः यह समझ कि इस समय प्रसव तक प्रबन्ध करना चाहिए फिर आर्थिक स्थिति का अनुमान लगा वह अपने भविष्य के विषय में विचार कर लेगी उसने अपने पति से कहा, ‘‘चलिए, चले।’’
‘‘किधर?’’
‘‘आपको लॉज की कोठरी खाली कर देनी चाहिए। वहाँ का सामान यदि किसी काम के योग्य हुआ तो यहाँ ले आएँगे अन्यथा वहीं फेंक-फाँक आएँगे। इसके साथ ही मैं होटल से अपना ट्रंक लेती आऊँगी।’’
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