उपन्यास >> मैं न मानूँ मैं न मानूँगुरुदत्त
|
350 पाठक हैं |
मैं न मानूँ...
‘‘वह कल अपनी पत्नी की खबर लेने जाएगा। जब उससे मिलकर आएगा, तब ही पता चलेगा कि वह इस विषय में क्या समझता है। मैं नहीं चाहता कि उसको हमारी ओर से इस विषय में कोई बात बताई जाए। ठीक यही होगा कि माला आप पर आरोप लगाए और फिर हम बात कर लेंगे।’’
लोकनाथ गर्दन झुकाए ऊपर चढ़ गया। नूरुद्दीन घर जाकर सो रहा। करीमा ने पूछा भी, ‘‘आज ग़मगीन मालूम होते हैं। तबीयत तो ठीक है?’’
‘‘ठीक है। सो जाने दो। मैं बहुत थक गया हूँ, आज।’’
‘‘क्या कस्सी चलाते रहे हैं?’’
‘‘बेग़म! आज सो जाओ। मत बोलो।’’
|