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उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610

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मैं न मानूँ...


‘‘वह कल अपनी पत्नी की खबर लेने जाएगा। जब उससे मिलकर आएगा, तब ही पता चलेगा कि वह इस विषय में क्या समझता है। मैं नहीं चाहता कि उसको हमारी ओर से इस विषय में कोई बात बताई जाए। ठीक यही होगा कि माला आप पर आरोप लगाए और फिर हम बात कर लेंगे।’’

लोकनाथ गर्दन झुकाए ऊपर चढ़ गया। नूरुद्दीन घर जाकर सो रहा। करीमा ने पूछा भी, ‘‘आज ग़मगीन मालूम होते हैं। तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘ठीक है। सो जाने दो। मैं बहुत थक गया हूँ, आज।’’

‘‘क्या कस्सी चलाते रहे हैं?’’

‘‘बेग़म! आज सो जाओ। मत बोलो।’’

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