उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
‘‘आज भी जब अकबर के मन में आया कि फतह उसकी ही होगी तो उसकी हँसी निकल गई। साथ ही वह विचार करने लगा कि वह फतह सुख और आराम की सूचक है अथवा दुःख और क्लेश की?
यह कैसे जाने? इसके लिए उसे यह समझ आया कि विभूतिचरण ही इस बात का उत्तर दे सकता है।
एकाएक उसके मन में विचार आया कि वह अभी नगर सराय में होगा। इस विचार के आते ही उसने ताली बजाई तो दरबान भीतर चला आया और सलाम कर हुक्म का इंतजार करने लगा।
अकबर ने कहा, ‘‘एक सिपाही को बुलाओ।’’
सिपाही आया तो अकबर ने उससे कहा, ‘‘भाग कर नगर सराय में जाओ। वहाँ पंडित विभूतिचरण हैं। उनसे कहो कि शहंशाह याद फरमाते हैं। देखो, उनसे कहना कि हम मंदिर की इफ्तताही रस्म के मुतअल्लिक पूछना चाहते हैं।’’
सिपाही गया तो अकबर पंडित के आने की प्रतीक्षा करने लगा।
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