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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


सेठ करोड़ीमल उस नौकरानी के साथ ऊपर की मंजिल पर जा पहुँचा। वहाँ एक अति गंदें कमरे में छोटी-सी खाट पर मैले बिस्तर पर और कई दिन के मैले कपड़े पहने सुन्दरलाल लेटा हुआ था। सुन्दरलाल की मूँछ-दाढ़ी बढ़ रही थीं। उसका मुख पीला पड़ गया था और गाल तथा आँखें धँस गई थीं।

करोड़ीमल सुन्दरलाल की भयानक सूरत देख भयभीत खड़ा रह गया। सुन्दरलाल ने सेठ की ओर देखा तो आँखें बन्द कर पड़ा रहा। वास्तव में वह विचार कर रहा था कि वह क्यों आया है।

सुन्दरलाल को चुप देख करोड़ीमल ने पूछा, ‘‘सुन्दरलाल ! क्या तकलीफ हैं तुमको?’’

‘‘यकृत में कैन्सर हो गया है। डाक्टरों ने जवाब दे दिया है। चेतन ने मरने के लिए यह स्थान दे रखा है।’’

‘‘चलो मेरे साथ। मैं तुम्हारी चिकित्सा कराऊँगा।’’

‘‘व्यर्थ है। सब डाक्टरों की राय है कि कैंसर है और इसकी कोई चिकित्सा नहीं।’’

‘‘नहीं है तो न सही। परंतु इस रंडी के घर में मरने से तो अपने घर पर चलकर मरना ठीक रहेगा।’’

‘‘अपना घर?’’ वह हँस पड़ा। उसने पूछा, ‘‘वह कहाँ है?’’

‘‘देवगढ़ मे। शकुन्तला भी आजकल सूसन के पास ही रहती है। सुना है कि उन्होंने बहुत ही सुन्दर मकान बना लिया है।’’

‘‘सूसन के पत्र तो आते रहते हैं। परन्तु यह विचार कर कि मरने के समय उसको कष्ट देने क्यों जाऊँ, मैं यहीं पड़ा हुआ हूँ। अब यह सुन कि शकुन्तला भी वहाँ है, आश्चर्य हुआ है।’’

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