लोगों की राय

उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

270 पाठक हैं

बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


इस समय ललिता के विवाह की बात हो गई और सेठ करोड़ीमल ने लिख भेजा कि माघ शुक्ला त्रयोदशी को विवाह का मुहूर्त निकलता है और वह लगभग बीस आदमियों के साथ आयेगा; फकीरचन्द को किसी प्रकार का प्रबन्ध नहीं करना चाहिए। वह अपने साथ हर प्रकार का खाने-पीने तथा रहने का सामान लेकर आयेगा।

करोड़ीमल ने शकुन्तला को लिखा कि नदी के पार खेमे लगाने के लिए भूमि ठीक करा दे। इसके अतिरिक्त अन्य किसी बात के प्रबन्ध करने की आवश्यकता नहीं। शकुन्तला ने अपने पिता को पत्र लिखा कि यदि हो सके तो अपने दामाद को साथ लेते आएँ।

सेठ करोड़ीमल की समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों लिखा गया है। इसपर भी उसने लड़की की बात पूरी करने का निश्चय कर लिया और वह लिखे पते पर जा पहुँचा।

मकान पर पहुँच उसने देखा कि वहाँ सारंगी-तबला बज रहा है और चेतन पाँव में घुंघरू बाँध कमरे में बीचों-बीच बैठी है। बहुत से लोग उसका नाच देखने के लिए कमरे की दीवार के साथ-साथ, बड़े-बड़े तकियों का आश्रय लिए बैठे थे। सेठ पहुँचा तो चेतन ने प्रश्न भरी दृष्टि से उसकी ओर देखा। सेठ ने पूछा, ‘‘सुन्दरलाल कहाँ है?’’

चेतन ने उँगली के संकेत से एक नौकरानी को कह दिया। वह नौकरानी सेठजी के पास आई और बोली, ‘‘चलिये, आपको सुन्दरलाल के पास ले चलूँ।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book