उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘सेठजी का कुछ पता है?’’
‘हाँ, वे चेतन वेश्या के घर जाकर रहने लगे हैं।’’
‘‘रामू ने पता बताया तो मैं मकान देखने चला गया। कुछ समय तक मकान के नीचे प्रतीक्षा करने पर, सुन्दरलाल मकान से उतरता दिखाई दिया। मैं बिजली के खम्भे के पीछे छिप गया और वह लड़खड़ाते कदमों के साथ एक ओर चला गया।’’
इस पत्र के नीचे बिहारीलाल ने चेतन का पता लिखा था।
इस पत्र के आने पर सूसन और शकुन्तला में विचार-विमर्श होने लगा। शकुन्तला का विचार था कि सुन्दरलाल के पास अभी भी रुपया है, अन्यथा वह वेश्या के घर पर न जाता और न ही वह उसको अपने घर में घुसने देती।
पत्र लिखा गया, परन्तु अभी उत्तर नहीं आया। इसमें दोनों औरतों ने यह समझा कि सुन्दरलाल ने लेनदारों से छिपाकर अवश्य बहुत-सा रुपया रखा हुआ है।
बिहारीलाल देवगढ़ पहुँचा तो दोनों औरतों ने उससे अपने पति के विषय में और सूचना प्राप्त की और सभी चुप रहने के अतिरिक्त और कोई उपाय ठीक नहीं समझा। बिहारीलाल का निश्चित मत था कि निरन्तर लिखते रहना चाहिए और इस घर का द्वार उसके लिए सदैव खुला रहना चाहिए। उसका विचार था कि उसको इस बात का विश्वास होना चाहिए कि उसको इस घर में मान और सुख मिलता रहेगा। इतना तो यह भी समझता था कि जबतक उसके पास रुपया है, तबतक वह यहाँ नहीं आयेगा।
ऐसा ही किया गया। अनुमान के अनुसार सुन्दरलाल का उत्तर नहीं आया। इसपर भी पत्र लिखा जाता रहा।
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