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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


जबतक बिहारीलाल वहाँ रहा, वह उसके द्वारा सुन्दरलाल के समाचार पाती रही। बिहारीलाल उसको लिखता रहता था कि मैरीन ड्राइव वाले मकान में दिन-रात-रंग मचा रहता है।

यह सब समाचार बिहारीलाल सुन्दरलाल के नौकर रामू से पाता था और जब भी वह वहाँ जाता और समाचार पाता, तो वह रामू को एक रुपया इनाम का दे आता था। बिहारीलाल का अंतिम पत्र, जो उसने परीक्षा के पश्चात् लिखा था, इस प्रकार था–‘‘सूसन बहिन ! परीक्षा समाप्त हुई। मेरी इच्छा अब और आगे पढ़ने की नहीं है। अतः अब कॉलेज और बम्बई को अन्तिम नमस्कार कहकर आ रहा हूँ। चलने से पूर्व बम्बई और पूना की सैर करने का विचार है। इस कारण देवगढ़ पहुँचने में कुछ दिन लग जायेंगे।

‘‘मैं कल मेरीन ड्राइव वाले मकान पर गया था। वहाँ उस फ्लैट को, जिसमें आप रहती थीं, ताला लगा था और बाहर सरकारी कुर्की का कागज लगा था। मैं अभी इसका अर्थ समझने का यत्न ही कर रहा था कि रामू मुझको दरवाजे के बाहर खड़ा देख, सलाम कर कहने लगा, ‘बाबू ! बहुत दिन के बाद आये हों?’’

‘मैंने उत्तर दिया, ‘मेरी परीक्षा थी। इस कारण फुर्सत नहीं मिली। क्या हुआ है?’’ मैंने पूछा।

‘‘उसने बताया, ‘‘यहाँ का राग-रंग तो चल ही रहा था। सेठजी खुले हाथ रुपया खर्च कर रहे थे। कदाचित् वे उधार भी लेते रहे हैं। उधार देने वालों ने नालिश कर दी है और सब मकान की कुर्की हो गई है। मकान तो मेम साहब के नाम है, कुर्क नहीं हो सका, परन्तु सामान और बर्तनों को ताला लग गया है।

‘‘मैंने नीचे के फ्लैट वालों की नौकरी कर ली है। आज आपको ऊपर चढ़ते देखा, तो बताने चला आया हूँ।’’

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