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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘मेरा विचार है कि तुम्हें चलना चाहिए। यदि यह सत्य है कि तुमको कैन्सर है और तुम वहाँ नहीं गये, तो दोनों औरतें तुमकों इस अंतिम समय में, उनसे तटस्थ रहने के लिए हठ करने पर जीवन भर क्षमा नहीं करेंगी और भगवान् जाने तुम्हारी आत्मा किस यंत्रणा में फँसी रहेंगी !’’

सुन्दरलाल मान गया। करोड़ीमल गया और स्ट्रेचर लाकर सुन्दरलाल को उठवाकर ले गया। उसको ले जाने में पूरी सावधानी की गई, इसपर भी वह पूर्ण मार्ग-भर वेदना से तड़फड़ाता रहा।

करोड़ीमल को सुन्दरलाल की दशा देख अपने किये पर पश्चात्ताप होने लगा। अपने घर की तलाशी ली जाने पर क्रुद्ध होकर उसने सेठ कुन्दनलाल और सुन्दरलाल की जड़ों में तेल देने का षड्यन्त्र किया था। वकील सोमनाथ और पाँडे ज्योतिषी को उसने तीन लाख रुपया देकर अपनी योजना सफल कराई थी। आज उसको अपने किये पर पश्चात्ताप हो रहा था। अपने हाथों से ही उसने अपनी लड़की के सुहाग को आग लगाई थी। एक बार वह ललिता का भी यही कुछ करने जा रहा था। उसकी पूर्ण योजना ललिता के सत्याग्रह ने विफल कर दी थी।

विवाह से दो दिन पूर्व सेठ और उसके कुछ सम्बन्धी तथा मित्र जिरौन पहुँच गये। वहाँ इन लोगों के ले जाने के लिए सवारी का प्रबन्ध किया हुआ था। सुन्दरलाल से लिए सेठ स्ट्रेचर बम्बई से ही साथ लाया था। शकुन्तला अपने सम्बन्धियों के स्वागत के लिए स्टेशन पर आई हुई थी। उसको सुन्दरलाल के आने का भी पता था, परन्तु वह यह नहीं जानती थी कि वह इस हालत में आ रहा है।

जब गाड़ी में से उसको स्ट्रेचर पर डाले हुए निकाला गया, तो वह उसका मुख देख मूर्तिवत् खड़ी रह गई।

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