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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


सुन्दरलाल की हजामत इत्यादि करवा दी गई थी। उसके शरीर को स्पंज करवा कर, साफ-सुथरे कपड़े पहना दिये गये थे इसपर भी उसके पिचके गाल और भीतर धँसी हुई आँखें छिपाई नहीं जा सकी थीं। न ही उसके चल सकने में असमर्थता छिपी रह सकी। शकुन्तला ने समीप जाकर पूछा, ‘‘यह क्या हो गया है आपको?’’

‘‘अब तो अंतिम घड़ियाँ हैं। मैं तुम दोनों से क्षमा माँगने चला आया हूँ। आशा तो है कि विवाह तक जीवित रहूँगा।’’

शकुन्तला की आँखों मे आँसू भर आये। वह उनको छिपाने के लिए अन्य लोगों का प्रबन्ध करने के बहाने वहाँ से टल गई। जब सब लोग ताँगों में चढ़-चढ़कर चले गये, तो वह स्ट्रेचर उठाने वालों के साथ-साथ पैदल ही चल पड़ी। ताँगें में झटके लगने का भय था।

सूसन ने सुन्दरलाल की हालत खराब देख, उसको अपने कमरे में ले जाकर लिटा दिया। सेठ ने जब उनको उसकी बीमारी का हाल बताया, तो दोनों भौंचक्की रह गईं। यह तो निश्चय-सा ही था कि वे विधवा होने जा रही हैं।

सेठ करोड़ीमल अपने साथ एक डाक्टर लाया था। उसको सुन्दरलाल की सेवा-सुश्रूषा में लगा दिया गया। डॉक्टर से कहा गया कि विवाह तक उसके जीवन को लम्बा करने का पूरा यत्न करे।

ललिता का विवाह हो गया। फकीरचन्द को बहुत-कुछ दिया गया। शकुन्तला का अनुमान था कि वह उससे बहुत ही अधिक होगा। जब ललिता की विदाई हो गई तो सब लोग खेमों में पहुँच, बम्बई जाने की तैयारी करने लगे। सेठ करोड़ीमल और पन्नादेवी सुन्दरलाल से मिलने आये। सूसन और शकुन्तला पहले ही वहाँ उपस्थित थीं। डॉक्टर के विचारानुसार वह दम तोड़ रहा था।

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