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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

फ्रेडरिक शोअर ने भी इसी बात की ओर इशारा किया था। कलकत्ता से प्रकाशित इंडिया गजट में उसने लिखा— ‘‘कंपनी सरकार ने यहां के लोगों पर अपने कारोबार से धाक जमा लिया है। सरकार का अनुशासन प्रशंसनीय है। इसके बावजूद यहाँ के लोग कंपनी सरकार की सत्ता स्वीकार नहीं करेंगे। वे इस सरकार को विदेशी हुकूमत के नजरिये से देखते हैं। इस सच्चाई को हमें जान लेना चाहिए।’’इस तरह के समाचार पढ़कर जनरल हिअर्सी बेकाबू हो जाता था। वह अंगारे बरसाकर कहता, ‘‘मैं यह स्वीकार करता हूँ कि नयी बंदूकों से देसी सिपाही नाराज हुए हैं, लेकिन सिर्फ इस बात को लेकर कोई विद्रोह नहीं कर सकता। वे सब कंपनी सरकार को मां-बाप मानते हैं। मुझे इस बात पर पक्का भरोसा है।’’

कोई कंपनी सरकार के पक्ष में बोल रहा था, तो कोई देसी सिपाहियों के पक्ष में।

वह 28 मार्च का दिन था। रविवार की छुट्टी। बैरकपुर की छावनी में सभी तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। किसी भी तरह की चहल-पहल नहीं थी। रविवार की रात में नशीला बॉल डांस हुआ था। हिअर्सी की आंखों में रात का खुमार शेष था। वह अपने कार्यालय में डाक देख रहा था। कलकत्ता से प्राप्त एक पत्र ने उसका ध्यान खींच लिया।उसमें लिखा था—‘‘विभिन्न स्थानों से समाचार मिले रहे हैं। देसी सिपाहियों में असंतोष बढ़ रहा है। बहरामपुर में कोई हादसा हुआ है। हमें छावनी के हर सिपाही पर कड़ी नजर रखनी चाहिए।’’

यह पत्र पढ़कर हिअर्सी को हंसी आ गयी। वह अपने आपसे बुदबुदाया, ‘‘हमारा बैरकपुर तुम्हारे बहरामपुर जैसा नहीं है। कलकत्ता के इन विद्वानों को कोई यह समझाये।’’

एक दिन हिअर्सी आराम फरमा रहा था। तभी एक अंग्रेज सिपाही दौड़ता हुआ अंदर आया। उसने खबर दी, ‘‘सर एक देसी सिपाही पागल हो गया है। वह कुछ भी हरकत कर सकता है। मैदान के बीचोंबीच खड़ा होकर सिपाहियों को भड़का रहा है। इस वक्त कुछ भी कर सकता है।’’

हिअर्सी चौंक गया। उसकी पलटन में उसके दो जवान लड़के भी भर्ती हुए थे। उसने लड़कों को पुकारा, ‘‘चलो, जल्दी तैयार हो जाओ। हमें तुरंत परेड ग्राउंड पर पहुँचना है।’’ हिअर्सी दोनों लड़कों के साथ परेड ग्राउंड पर जा पहुँचा। वह मैदान का दृश्य देखकर दंग रह गया। होश संभालकर उसने पूछा, ‘‘इस सिपाही का क्या नाम है?’’

‘‘मंगल पांडे !’’ जवाब मिला।

बैरक के सामने खड़े होकर वह अपने साथियों का आह्वान कर रहा था—‘‘लड़ाई के लिए तैयार हो जाओ। कल रात हमने फैसला किया है। क्या आप यह बात भूल गये हैं?’’

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