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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

इस आह्वान के बावजूद देसी सिपाही अपनी जगहों पर शांत खड़े रहे। यह देखकर मंगल पांडे भड़क गया। ‘‘आप लोग डरपोक हैं। नामर्द हैं। ठीक है, मैं अब स्वयं अकेला दुश्मन से लड़ूँगा।’’ हाथ में बंदूक उठाकर मंगल पांडे मैदान में दौड़ने लगा। तभी सार्जेट मेजर ह्यूस्टन और लेफ्टिनेंट बॉ वहाँ पहुँच गये। उन्हें देखकर मंगल पांडे का खून खौल उठा। बॉ अपना घोड़ा मंगल पांडे के सामने करके आगे बढ़ा। ह्यूस्टन ने उसे रोका और कहा, ‘‘रुक जाइये। आप उस सिपाही के पास हरगिज नहीं जाइये। वह पागल हो गया है। वह आप पर किसी भी समय हमला कर सकता है।’’

अंग्रेज अधिकारी चतुराई से आगे बढ़ रहा था यह देखकर मंगल पांडे ने उस पर गोली चला दी। निशाना गलत लगने से वह गोली बॉ के घोड़े को जा लगी। ह्यूस्टन सावधान होकर मंगल पांडे पर निशाना साधते हुए खड़ा हुआ। लेकिन मन ही मन डर गया था। वह निशाना नहीं लग सका। पांडे ने कमर से तलवार खींच कर बॉ की गर्दन और कंधे पर वार कर दिया। उसके बाद ह्यूस्टन के माथे पर बंदूक के दस्ते से वार किया। अकेले मंगल पांडे ने दो अंग्रेज अधिकारियों का मुकाबला किया। तभी पांडे की ओर से उसका साथी सिपाही शेख पालटु दौड़ा। पांडे अपने साथी को देखकर असावधान स्थिति में खड़ा रहा। पांडे की सहायता करने के बजाय शेख पालटु ने उसको पीछे से पकड़ लिया। मंगल पांडे शेख पालटु के सामने असहाय हो गया। शेख पालटु बलवान और ऊंची कदकाठी का सिपाही था। मंगल पांडे के दोनों हाथ जकड़ लिये गये थे। वह कुछ नहीं कर पा रहा था। कुछ देर बाद पांडे ने पालटु का पाश ढीला किया। अब वह बॉ और ह्यूस्टन का पीछा करने लगा। शेख पालटु ने अपने सहकर्मी सिपाही को धोखा दिया था। यह देखकर सभी देसी सिपाही संतप्त हुए। वे अब पालटु पर पत्थर और जूते फेंकने लगे। पालटु यह देखकर डर गया। वह जान बचाकर मैदान से भाग निकला।

तब तक कर्नल व्हीलर वहां पहुंच गया। हमेशा की तरह गर्जना करके उसने आदेश दिया, ‘‘उस हरामजादे को पकड़कर मेरे सामने खड़ा कर दो।’’

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