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नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक) चन्द्रहार (नाटक)प्रेमचन्द
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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है
जालपा—(बाहर से) है कहाँ?
देवीदीन—यह क्या खड़ा है।
जालपा—अच्छा, बुला लो।
(देवीदीन रमानाथ को पकड़े– पकड़े मस्ती से बाहर जाता है, परदा गिरता है।)
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