|
नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक) चन्द्रहार (नाटक)प्रेमचन्द
|
336 पाठक हैं |
‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है
जग्गो—भैया नहीं आ रहे?
देवीदीन—भैया अब नहीं आयेंगे। जब अपने ही अपने न हुए तो बेगाने हैं ही।
(वह दृष्टि से ओझल हो जाता है, साथ ही बुढ़िया भी। दारोगा। और रमानाथ दोनों कई क्षण उन्हें जाते देखते हैं। फिर एक दूसरे को देखते हैं और दृष्टि झुका लेते हैं। यहीं परदा गिरता है।)
|
|||||
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book

i 










