उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
देवी.–घरवाले खबर पाते ही आ जायेंगे। यह चर्चा ही न उठेगी। उनकी कोई चिन्ता नहीं। डर पुलिस ही का है।
रमा.–मैं सजा से बिल्कुल नहीं डरता। तुमसे कहा नहीं, एक दिन मुझे वाचनालय में जान-पहचान की एक स्त्री दिखायी दी। हमारे घर बहुत आती-जाती थी। मेरी स्त्री से बड़ी मित्रता थी। एक बड़े वकील की पत्नी है। उसे देखते ही मेरी नानी मर गयी। ऐसा सिटपिटा गया कि उसकी ओर ताकने की हिम्मत न पड़ी। चुपके से उठकर पीछे के बरामदे में जा छिपा। अगर उस वक्त उससे दो-चार बातें कर लेता, तो घर का सारा समाचार मालूम हो जाता और मुझे यह विश्वास है कि यह इस मुलाकात की किसी से चर्चा भी न करती। मेरी पत्नी से भी न कहती, लेकिन मेरी हिम्मत ही न पड़ी। अब अगर मिलना भी चाहूँ, तो नहीं मिल सकता। उसका पता-ठिकाना कुछ भी तो नहीं मालूम।
देवी.–तो फिर उसको क्यों नहीं एक चिट्ठी लिखते?
रमा.–चिट्ठी तो मुझसे न लिखी जायगी।
देवी.–तो कब तक चिट्ठी न लिखोगे?
रमा.–देखा चाहिए।
देवी.–पुलिस तुम्हारी टोह में होगी।
देवीदीन चिन्ता में डूब गया। रमा को भ्रम हुआ, शायद पुलिस का भय इसे चिन्तित कर रहा है। बोला–हाँ, इसकी शंका मुझे हमेशा बनी रहती है। तुम देखते हो, मैं दिन को बहुत कम घर से निकलता हूँ; लेकिन मैं तुम्हें अपने साथ नहीं, घसीटना चाहता मैं तो जाऊँगा ही, तुम्हें क्यों उलझन में डालूँ। सोचता हूँ, कहीं और चला जाऊँ, किसी ऐसे गाँव में जाकर रहूँ, जहाँ पुलिस की गन्ध भी न हो।
देवीदीन ने गर्व से सिर उठाकर कहा–मेरे बारे में तुम कुछ चिन्ता न करो भैया, यहाँ पुलिस से डरने वाले नहीं हैं। किसी परदेशी को अपने घर ठहराना पाप नहीं है। हमें क्या मालूम किसके पीछे पुलिस है? यह पुलिस का काम है, पुलिस जाने। मैं पुलिस का मुखबिर नहीं, जासूस नहीं, गोइन्दा नहीं। तुम अपने को बचाये रहो, देखो भगवान क्या करते हैं। हाँ, कहीं बुढ़िया से न कह देना, नहीं तो उसके पेट में पानी न पचेगा।
दोनों एक क्षण चुपचाप बैठे रहे। दोनों इस प्रसंग को इस समय बंद कर देना चाहते थे। साहसा देवीदीन ने कहा–क्यों भैया, कहो तो मैं तुम्हारे घर चला जाऊँ किसी को कानोंकान खबर न होगी। मैं इधर-उधर से सारा ब्योरा पूछ आऊँगा। तुम्हारे पिता से मिलूँगा, तुम्हारी माता को समझाऊँगा, तुम्हारी घरवाली से बातचीत करूँगा। फिर जैसा उचित जान पड़े, वैसा करना।
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