लोगों की राय

उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास)

ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

438 पाठक हैं

ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


रमा ने कुछ जवाब न दिया। उसके सामने यह नया प्रश्न आ खड़ा हुआ। जिन बातों को वह अनुभव न होने के कारण महाकष्ट-साध्य समझता था, उन्हें इस बूढ़े ने निर्मूल कर दिया, और बूढ़ा शेखीबाजों में नहीं है, वह मुँह से जो कहता है, उसे पूरा कर दिखाने की सामर्थ्य रखता है। उसने सोचा, तो क्या मैं सचमुच देवीदीन के साथ घर चला जाऊँ? यहाँ कुछ रुपये मिल जाते, तो नये सूट बनवा लेता, फिर शान से जाता। वह उस अवसर की कल्पना करने लगा, जब वह नया सूट पहने हुए घर पहुँचेगा। उसे देखते ही गोपी और विश्वम्भर दौड़ेंगे–भैया आये, भैया आये। दादा निकल आयँगे। अम्मा को पहले विश्वास न आयेगा; मगर जब दादा जाकर कहेंगे–हाँ आ तो गये, तब वह रोती हुई द्वार की ओर चलेंगी। उसी वक्त मैं पहुँचकर उनके पैरों पर गिर पड़ूँगा। जालपा वहाँ न आयेगी। वह मान किये बैठी रहेगी। रमा ने मन ही मन वह वाक्य भी सोच लिये, जो वह जालपा को मनाने के लिए कहेगा। शायद रुपये की चर्चा ही न आये। इस विषय पर कुछ कहते हुए सभी को संकोच होगा। अपने प्रियजनों से जब कोई अपराध हो जाता है, तो हम उघटकर उसे दुःखी नहीं करते। चाहतें हैं कि उस बात का उसे ध्यान ही न आये; उसके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं कि उसे हमारी ओर से ज़रा भी भ्रम न हो, वह भूलकर भी यह न समझे कि मेरी अपकीर्ति हो रही है।

देवीदीन ने पूछा–क्या सोच रहे हो? चलोगे न?

रमा ने दबी जबान से कहा–तुम्हारी इतनी दया है, तो चलूँगा; मगर पहले तुम्हें मेरे घर जाकर पूरा-पूरा समाचार लाना पड़ेगा। अगर मेरा मन न भरा, तो मैं लौट आऊँगा।

देवीदीन ने दृढ़ता से कहा–मंजूर।

रमा ने संकोच से आँखें नीची करके कहा–एक बात और है?

देवीदीन–क्या बात है? कहो।

‘मुझे कुछ कपड़े बनवाने पड़ेंगे।’

‘बन जायेंगे।’

‘मैं घर पहुँचकर तुम्हारे रुपये दिला दूँगा।’

‘और मैं तुम्हारी गुरु-दक्षिणा भी वहीं दे दूँगा।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book