उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
दारोगा ने पूछा–तुझे किस पर शुबहा है?
होरी ने ज़मीन छुई और हाथ बाँधकर बोला–मेरा सुबहा किसी पर नहीं है सरकार, गाय अपनी मौत से मरी है। बुड्ढी हो गयी थी।
धनिया भी आकर पीछे खड़ी थी। तुरन्त बोली–गाय मारी है तुम्हारे भाई हीरा ने। सरकार ऐसे बौड़म नहीं हैं कि जो कुछ तुम कह दोगे, वह मान लेंगे। यहाँ जाँच-तहकिकात करने आये हैं।
दारोगाजी ने पूछा–यह कौन औरत है?
कई आदमियों ने दारोगाजी से कुछ बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए चढ़ा-चढ़ी की। एक साथ बोले और अपने मन को इस कल्पना से सन्तोष दिया कि पहले मैं बोला–होरी की घरवाली है सरकार!
‘तो इसे बुलाओ, मैं पहले इसी का बयान लिखूँगा। वह कहाँ है हीरा?’
विशिष्ट जनों ने एक स्वर से कहा–वह तो आज सबेरे से कहीं चला गया है सरकार!
‘मैं उसके घर की तलाशी लूँगा।’
तलाशी। होरी की साँस तले-ऊपर होने लगी। उसके भाई हीरा के घर की तलाशी होगी और हीरा घर में नहीं है। और फिर होरी के जीते-जी, उसके देखते यह तलाशी न होने पायेगी; और धनिया से अब उसका कोई सम्बन्ध नहीं। जहाँ चाहे जाय। जब वह उसकी इज्जत बिगाड़ने पर आ गयी है, तो उसके घर में कैसे रह सकती है। जब गली-गली ठोकर खायेगी, तब पता चलेगा।
गाँव के विशिष्ट जनों ने इस महान संकट को टालने के लिए काना-फूसी शुरू की। दातादीन ने गंजा सिर हिलाकर कहा–यह सब कमाने के ढंग हैं। पूछो, हीरा के घर में क्या रखा है।
पटेश्वरीलाल बहुत लम्बे थे; पर लम्बे होकर भी बेवकूफ न थे। अपना लम्बा काला मुँह और लम्बा करके बोले–और यहाँ आया है किस लिए, और जब आया है बिना कुछ लिये-दिये गया कब है?
झिंगुरीसिंह ने होरी को बुलाकर कान में कहा–निकालो जो कुछ देना हो। यों गला न छूटेगा।
दारोगाजी ने अब जरा गरजकर कहा–मैं हीरा के घर की तलाशी लूँगा। होरी के मुख का रंग ऐसा उड़ गया था, जैसे देह का सारा रक्त सूख गया हो। तलाशी उसके घर हुई तो, उसके भाई के घर हुई तो, एक ही बात है। हीरा अलग सही; पर दुनिया तो जानती है, वह उसका भाई है; मगर इस वक्त उसका कुछ बस नहीं। उसके पास रुपए होते, तो इसी वक्त पचास रुपए लाकर दारोगाजी के चरणों पर रख देता और कहता–सरकार, मेरी इज्जत अब आपके हाथ है। मगर उसके पास तो जहर खाने को भी एक पैसा नहीं है। धनिया के पास चाहे दो-चार रुपए पड़े हों; पर वह चुड़ैल भला क्यों देने लगी। मृत्युदंड पाये हुए आदमी की भाँति सिर झुकाये, अपने अपमान की वेदना का तीव्र अनुभव करता हुआ चुपचाप खड़ा रहा।
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