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कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
केदार–नहीं मेरी अम्माँ, कहीं रोने-गाने न लगे।
पन्ना–तेरा मन हो, तो मैं बातों-बातों में उसके मन की थाह लूँ!
केदार–मैं नहीं जानता, जो चाहे कर।
पन्ना केदार के मन की बात समझ गयी। लड़के का दिल मुलिया पर आया हुआ है; पर संकोच और भय के मारे कुछ नहीं कहता।
उसी दिन उसने मुलिया से कहा–क्या करूँ बहू, मन की, लालसा मन में ही रही जाती है। केदार का घर भी बस जाता तो मैं निश्चिन्त हो जाती।
मुलिया–वह तो करने को ही नहीं कहते।
पन्ना–कहता है, ऐसी औरत मिले, जो घर में मेल से रहे तो कर लूँ।
मुलिया–ऐसी औरत कहाँ मिलेगी? कहीं ढूँढ़ो।
पन्ना–मैंने तो ढूँढ़ लिया है।
मुलिया–सच! किस गाँव की है?
पन्ना–अभी न बताऊँगी, मुदा यह जानती हूँ कि उससे केदार की सगायी हो जाय, तो घर बन जाय और केदार की जिन्दगी सुफल हो जाय। न जाने लड़की मानेगी कि नहीं।
मुलिया–मानेगी क्यों नहीं अम्माँ, ऐसा सुन्दर, कमाऊ, सुशील वर कहाँ मिला जाता है। उस जनम का कोई
साधु-महात्मा है, नहीं तो लड़ाई-झगड़े के डर से कौन बिन ब्याहा रहता है। कहाँ रहती है, मैं जा कर उसे मना लाऊँ।
पन्ना–तू चाहे, तो उसे मना ले। तेरे ही ऊपर है।
मुलिया–मैं आज ही चली जाऊँगी अम्माँ! उसके पैरों पड़ कर मना लाऊँगी।
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