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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


पन्ना–बता दूँ! वह तू ही है!

मुलिया लजा कर बोली–तुम तो अम्माँ जी, गाली देती हो।

पन्ना–गाली कैसी, देवर ही तो है!

मुलिया–मुझ जैसी बुढ़िया को वह क्यों पूछेंगे।

पन्ना–वह तुझी पर दाँत लगाये बैठा है। तेरे सिवा कोई और उसे भाती ही नहीं। डर के मारे कहता नहीं; पर उसके मन की बात मैं जानती हूँ।

वैधव्य के शोक से मुरझाया हुआ मुलिया का पीत वदन कमल की भाँति अरुण हो उठा। दस वर्षों में जो कुछ खोया था, वह इसी एक क्षण में मानो ब्याज के साथ मिल गया। वही लावण्य, वही विकास, वही आकर्षण, वही लोच।

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