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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


आख़िर जब मुझे अपनी शायरी के लौटने की कोई उम्मीद नहीं रही, तो मेरे दिल में यह इरादा पक्का हो गया कि अब मेरे लिए शायरी की दुनिया से मर जाना ही बेहतर होगा। मुर्दा तो हूँ ही, इस हालत में अपने को ज़िंदा समझना बेवकूफ़ी है। आख़िर मैंने एक रोज़ कुछ दैनिक पत्रों को अपने मरने की ख़बर दे दी। उसके छपते ही मुल्क में कोहराम मच गया, एक तहलका पड़ गया। उस वक़्त मुझे अपनी लोकप्रियता का कुछ अंदाजा हुआ। यह आम पुकार थी, कि शायरी की दुनिया की किस्ती मझधार में डूब गयी। शायरी की महफ़िल उखड़ गयी। पत्र-पत्रिकाओं में मेरे जीवन-चरित्र प्रकाशित हुए जिनको पढ़ कर मुझे उनके एडीटरों की आविष्कार-बुद्धि का क़ायल होना पड़ा। न तो मैं किसी रईस का बेटा था और न मैंने रईसी की मसनद छोड़कर फ़क़ीरी अख़्तियार की थी। उनकी कल्पना वास्तविकता पर छा गयी थी। मेरे मित्रों में एक साहब ने, जिन्हें मुझसे आत्मीयता का दावा था, मुझे पीने-पिलाने का प्रेमी बना दिया था। वह जब कभी मुझसे मिलते, उन्हें मेरी आखें नशे से लाल नज़र आतीं। अगरचे इसी लेख में आगे चलकर उन्होनें मेरी इस बुरी आदत की बहुत हृदयता से सफाई दी थी क्योंकि रुखा-सूखा आदमी ऐसी मस्ती के शेर नहीं कह सकता था। ताहम हैरत है कि उन्हें यह सरीहन ग़लत बात कहने की हिम्मत कैसे हुई।

खैर, इन ग़लत-बयानियों की तो मुझे परवाह न थी। अलबत्ता यह बड़ी फ़िक्र थी, फ़िक्र नहीं एक प्रबल जिज्ञासा थी, कि मेरी शायरी पर लोगों की ज़बान से क्या फतवा निकलता है। हमारी ज़िन्दगी के कारनामे की सच्ची दाद मरने के बाद ही मिलती है क्योंकि उस वक़्त वह खुशामद और बुराइयों से पाक-साफ़ होती हैं। मरने वाले की खुशी या रंज की कौन परवाह करता है। इसीलिए मेरी कविता पर जितनी आलोचनाएँ निकली हैं उसको मैंने बहुत ही ठंडे दिल से पढ़ना शुरु किया। मगर कविता को समझने वाली दृष्टि की व्यापकता और उसके मर्म को समझने वाली रुचि का चारों तरफ़ अकाल-सा मालूम होता था। अधिकांश जौहरियों ने एक-एक शेर को लेकर उनसे बहस की थी, और इसमें शक नहीं कि वे पाठक की हैसियत से उस शेर के पहलुओं को ख़ूब समझते थे। मगर आलोचक का कहीं पता न था। नज़र की गहराई ग़ायब थी। समग्र कविता पर निगाह डालने वाला कवि, गहरे भावों तक पहुँचने वाला कोई आलोचक दिखाई न दिया।

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