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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


अगर पहले आयशा को मेरे दिवानेपन में कुछ शक था तो वह दूर हो गया। आख़िर मैंने थोड़े लफ़्जों में अपनी दास्तान सुनायी और जब उसको यकीन हो गया कि ‘दुनियाए हुस्न’ का लिखनेवाला अख्तर अपने इन्सानी चोले में है तो उसके चेहरे पर खुशी की एक हल्की सुर्खी दिखायी दी और यह हल्का रंग बहुत जल्द खुददारी और रुप-गर्व के शोख रंग से मिलकर कुछ का कुछ हो गया। ग़ालिबन वह शर्मिंदा थी कि क्यों उसने अपनी क़द्रदानी को हद से बाहर जाने दिया। कुछ देर की शर्मीली खामोशी के बाद उसने कहा—मुझे अफसोस है कि आपको ऐसी मनहूस ख़बर निकालने की जरूरत हुई।

मैंने जोश में भरकर जवाब दिया—आपके क़लम की ज़बान से दाद पाने की कोई सूरत न थी। इस तनक़ीद के लिए मैं ऐसी-ऐसी कई मौते मर सकता था।

मेरे इस बेधड़क अंदाज़ ने आयशा की ज़बान को भी शिष्टाचार और संकोच की क़ैद से आज़ाद किया, मुस्कराकर बोली—मुझे बनावट पसंद नहीं है। डाक्टरों ने कुछ बतलाया नहीं? उसकी इस मुस्कराहट ने मुझे दिल्लगी करने पर आमादा किया, बोला—अब मसीह के सिवा इस मर्ज़ का इलाज और किसी के हाथ नहीं हो सकता।

आयशा इशारा समझ गई, हँसकर बोली—मसीह चौथे आसमान पर रहते हैं।

मेरी हिम्मत ने अब और क़दम बढ़ाये—रुहों की दुनिया से चौथा आसमान बहुत दूर नहीं है।

आयशा के खिले हुए चेहरे से संजीदगी और अजनबियत का हल्का रंग उड़ गया। ताहम, मेरे इन बेधड़क इशारों को हद से बढ़ते देखकर उसे मेरी ज़बान पर रोक लगाने के लिए किसी क़दर खुददारी बरतनी पड़ी। जब मैं कोई घंटे-भर के बाद उस कमरे से निकला तो बजाय इसके कि वह मेरी तरफ़ अपनी अंग्रेजी तहजीब के मुताबिक हाथ बढ़ाये उसने चोरी-चोरी मेरी तरफ़ देखा। फैला हुआ पानी जब सिमटकर किसी जगह से निकलता है तो उसका बहाव तेज और ताक़त कई गुना ज़्यादा हो जाती है। आयशा की उन निगाहों में अस्मत की तासीर थी। उनमें दिल मुस्कराता था और ज़ज्बा नाचता था। आह, उनमें मेरे लिए दावत का एक पुरजोर पैग़ाम भरा हुआ था। जब मैं मुस्लिम होटल में पहुँचकर इन वाक़यात पर ग़ौर करने लगा तो मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि गो मैं ऊपर से देखने पर यहाँ अब तक अपरिचित था लेकिन भीतरी तौर पर शायद मैं उसके दिल के कोने तक पहुँच चुका था।

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