कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
317 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
एक रोज़ मैं अपने काम से फुसरत पाकर शाम के वक्त़ मनोरंजन के लिए आनंदवाटिका मे पहुँचा और संगमरमर के हौज पर बैठकर मछलियों का तमाशा देखने लगा। एकाएक निगाह ऊपर उठी तो मैंने एक औरत को बेले की झाड़ियों में फूल चुनते देखा। उसके कपड़े मैले थे और जवानी की ताजगी और गर्व को छोड़कर उसके चेहरे में कोई ऐसी ख़ास बात न थी। उसने मेरी तरफ़ आँखें उठायीं और फिर फूल चुनने में लग गयी, गोया उसने कुछ देखा ही नहीं। उसके इस अंदाज़ ने, चाहे वह उसकी सरलता ही क्यों न रही हो, मेरी वासना को और भी उद्दीप्त कर दिया। यह मेरे लिए यह एक नयी बात थी कि कोई औरत इस तरह देखे कि जैसे उसने नहीं देखा। मैं उठा और धीरे-धीरे, कभी ज़मीन और कभी आसमान की तरफ़ ताकते हुए बेले की झाड़ियों के पास जाकर खुद भी फूल चुनने लगा। इस ढिठाई का नतीजा यह हुआ कि वह मालिन की लड़की वहाँ से तेजी के साथ बाग़ के दूसरे हिस्से में चली गयी।
उस दिन से मालूम नहीं वह कौन-सा आकर्षण था जो मुझे रोज़ शाम के वक़्त आनंदवाटिका की तरफ़ खींच ले जाता। उसे मुहब्बत हरगिज नहीं कह सकते। अगर मुझे उस वक़्त भगवान् न करें, उस लड़की के बारे में कोई, शोक-समाचार मिलता तो शायद मेरी आँखों से आँसू भी न निकलते, जोगिया धारण करने की तो चर्चा ही व्यर्थ है। मैं रोज़ जाता और नये-नये रुप धरकर जाता लेकिन जिस प्रकृति ने मुझे अच्छा रुप-रंग दिया था उसी ने मुझे वाचालता से वंचित भी कर रखा था। मैं रोज़ जाता और रोज़ लौट जाता, प्रेम की मंजि़ल में एक क़दम भी आगे न बढ़ पाता था। हाँ, इतना अलबत्ता हो गया कि उसे वह पहली-सी झिझक न रही।
आख़िर इस शांतिपूर्ण नीति को सफल न होते देखकर मैंने एक नयी युक्ति सोची। एक रोज मैं अपने साथ अपने शैतान बुलडाग टामी को भी लेता गया। जब शाम हो गयी और वह मेरे धैर्य का नाश करने वाली फूलों से आंचल भरकर अपने घर की ओर चली तो मैंने अपने बुलडाग को धीरे से इशारा कर दिया। बुलडाग उसकी तरफ़ बाज की तरह झपटा, फूलमती ने एक चीख मारी, दो-चार क़दम दौड़ी और ज़मीन पर गिर पड़ी। अब मैं छड़ी हिलाता, बुलडाग की तरफ़ गुस्से-भरी आँखों से देखता और हाँय-हाँय चिल्लाता हुआ दौड़ा और उसे जोर से दो-तीन डंडे लगाये। फिर मैंने बिखरे हुए फूलों को समेटा, सहमी हुई औरत का हाथ पकड़कर बिठा दिया और बहुत लज्जित और दुखी भाव से बोला—यह कितना बड़ा बदमाश है, अब इसे अपने साथ कभी नहीं लाऊँगा। तुम्हें इसने काट तो नहीं लिया?
|