कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
यह निर्दय उत्तर पाकर उसने करुण स्वर में पूछा– तो फिर क्या तदबीर है?
मुझे उस पर रहम तो आ रहा था लेकिन कायदों की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। मुझे नतीजे का ज़रा भी डर न था। कोर्टमार्शल या तनज़्ज़ुली या और कोई सज़ा मेरे ध्यान में न थी। मेरा अन्तःकरण भी साफ़ था। लेकिन कायदे को कैसे तोडूँ। इसी हैस-बैस में खड़ा था कि लुईसाने एक कदम बढ़कर मेरा हाथ पकड़ लिया और निहायत पुरदर्द बेचैनी के लहजे में बोली– तो फिर मैं क्या करूँ?
ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसका दिल पिघला जा रहा हो। मैं महसूस कर रहा था कि उसका हाथ कांप रहा था। एक बार जी में आया जाने दूं। प्रेमी के संदेश या अपने वचन की रक्षा के सिवा और कौन-सी शक्ति इस हालत में उसे घर से निकलने पर मजबूर करती? फिर मैं क्यों किसी की मुहब्बत की राह का काटा बनूं। लेकिन कायदे ने फिर ज़बान पकड़ ली। मैंने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश न करके मुँह फेरकर कहा– और कोई तदबीर नहीं है।
मेरा जवाब सुनकर उसकी पकड़ ढीली पड़ गई कि जैसे शरीर में जान न हो पर उसने अपना हाथ हटाया नहीं, मेरे हाथ को पकड़े हुए गिड़गिड़ा कर बोली– संतरी, मुझ पर रहम करो। खुदा के लिए मुझ पर रहम करों मेरी इज़्ज़त खाक में मत मिलाओ। मैं बड़ी बदनसीब हूँ।
मेरे हाथ पर आँसूओं के कई गरम कतरे टपक पड़े। मूसलाधार बारिश का मुझ पर जर्रा-भर भी असर न हुआ था लेकिन इन चन्द बूंदों ने मुझे सर से पाँव तक हिला दिया।
मैं बड़े पसोपेश में पड़ गया। एक तरफ़ कायदे और फर्ज की आहनी दीवार थी, दूसरी तरफ़ एक सुकुमार युवती की विनती-भरा आग्रह। मैं जानता था अगर उसे सार्जेण्ट के सिपुर्द कर दूँगा तो सवेरा होते ही सारे बटालिन में ख़बर फैल जाएगी, कोर्टमार्शल होगा, कमाण्डिंग अफसर की लड़की पर भी फौज का लौह क़ानून कोई रियायत न कर सकेगा। उसके बेरहम हाथ उस पर भी बेदर्दी से उठेंगे। खासकर लड़ाई के जमाने में।
और अगर इसे छोड़ दूँ तो इतनी ही बेदर्दी से क़ानून मेरे साथ पेश आयेगा। ज़िन्दगी ख़ाक में मिल जायेगी। कौन जाने कल जिन्दा भी रहूँ या नहीं। कम से कम तनज्जुली तो होगी ही। भेद छिपा भी रहे तो क्या मेरी अन्तरात्मा मुझे सदा न धिक्कारेगी? क्या मैं फिर किसी के सामने इसी दिलेर ढंग से ताक सकूँगा? क्या मेरे दिल में हमेशा एक चोर-सा न समाया रहेगा?
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